अरकान : 2122 2122 2122 212
एक तरफ़ा इश्क़ मेरा बेअसर होने को है
ख़त्म यानी ज़िन्दगी का ये सफ़र होने को है
कहने को तो सर पे सूरज आ गया है दोस्तो
ज़िन्दगी में पर हमारी कब सहर होने को है
हर किसी ने हाथ में पत्थर उठाये देखिये
और फिर उनका निशाना मेरा सर होने को है
आपको चाहा था मैंने बेतहाशा टूट कर
अब यही तकलीफ़ मुझको उम्र भर होने को है
करना है कुछ आपको तो बस दुआएँ कीजिए
अब दवाओं का कहाँ मुझ पे असर होने को है
डर रहा है लो ख़ुदा भी आदमी को देखकर
जल्द ये अख़बार की पहली ख़बर होने को है
बजबजाती नालियों सी है सियासत हर कहीं
कुछ दिनों में देखना दुनिया गटर होने को है
देश के हालात पर गाँधी के बन्दर कह उठे
क्या मियाँ सोचा था हमने क्या मगर होने को है
रहती दुनिया तक रहेगा यार अपना इश्क़ भी
मत समझ क़िस्सा ये अपना मुख़्तसर होने को है
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आ. अजय जी, ग़ज़ल पर आपकी पुनः उपस्थिति और स्नेहिल टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ. //आप अपने को नव-शिक्षार्थी कह कर बच नहीं सकते. नए की जिम्मेदारी पुराने से ज्यादा होती है.// मैं पूरी कोशिश करूँगा कि आपके इस विश्वास पर खरा उतरूँ. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
हार्दिक आभार आ. लक्ष्मण धामी जी. सादर धन्यवाद.
आ. तस्दीक़ अहमद जी, ग़ज़ल में आपकी शिरकत, हौसला अफज़ाई और इस्लाह का बहुत-बहुत धन्यवाद. मैं देखता हूँ क्या हो सकता है. आपका हार्दिक आभार. सादर.
आदरणीय महेंद्र जी,
आप को नया होना नहीं है आप पूर्वतः नये हैं, हर तरफ से आप को नई सोच और भाषा घेरे हुए है बस उसे अभिव्यक्त होने का रास्ता भर देना है. गद्य में या दूसरी कविताओं में यह काम आप पहले से कर रहे हैं, उसे ग़ज़ल में आने देने की जरूरत है. शायर से नयेपन की अपेक्षा कोई नई नहीं है, एक बहुत पुरानी उक्ति है 'लीक छाड़ि तीनों चलें शायर, सिंह, सपूत'.
लेकिन यह भी एक तथ्य है कि सिर्फ नयापन अच्छे शेर की गारन्टी नहीं है. वस्तुतः अच्छे शेर के लिए कोई नुस्खा तय नहीं किया जा सकता. यह भी सच है कि किसी भी शायर का हर शेर बेहतर नहीं होता चाहे वह कितना भी बड़ा शायर हो. लेकिन हर अच्छा शायर कुछ नया करने की कोशिश करता है और उसकी कोशिश यही होती है कि उसका हर शेर बेहतर हो.
ये देखते हुए कि यह एक तरही ग़ज़ल है मेरी पिछली टिप्पणियां निश्चित रूप से अतिवादी है. लेकिन ये अतिवाद इसलिए भी है कि आपसे उम्मीदें ज्यादा हैं और ये उम्मीदें इस लिए हैं कि आपमें कुछ नया और कुछ बेहतर करने की हर संभावना मौजूद है. आप अपने को नव-शिक्षार्थी कह कर बच नहीं सकते. नए की जिम्मेदारी पुराने से ज्यादा होती है.
सादर
हार्दिक बधाई।
जनाब महेंद्र कुमार साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
शब्दों की अच्छी सेटिंग से मिसरा अच्छा हो जाता है ।अगर निम्न मिसरे पसंद आएं तो रख लीजिए ।
शेर 1 सानी--ख़त्म यानी ज़िंदगानी का सफ़र होने को है ।
शेर 2सानी--पर हमारी ज़िंदगी में कब सहर होने को है ।
शेर 3 -हर किसी ने यूँ नहीं पत्थर उठाये हाथ में -ऐसा लगता है निशाना मेरा सर होने को है ।
शेर 9 उला-रहती दुनिया तक रहेगा हर फसाना इश्क़ का ।। सादर
नवीनता वाकई में बहुत मुश्किल चीज है. ख़ासकर हम जैसे नव-शिक्षार्थियों हेतु. कई बार हम जो पहली बार कह रहे होते हैं उसे ही नवीन मान लेते हैं. आपकी बात को ध्यान में रखकर इस ग़ज़ल को देखता हूँ तो मुझे केवल तीन-चार अशआर में ही थोड़ी-बहुत नवीनता नज़र आती है. भविष्य में मैं इस बात का पूरा ध्यान रखूँगा. इस ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. आपके विश्वास पर ख़रा उतरने की पूरी कोशिश रहेगी. सादर.
आदरणीय महेंद्र जी,
जावेद अख्तर ने एक साक्षात्कार में कहा था ''शेर में जो बात आप कह रहे है वो नई हो या जिस तरह से कह रहे है वो कम से कम नया हो, अगर इन दोनों में कोई नहीं है तो फिर शेर काफिया पैमाई भर हो कर रह जाता हैं.'' आप शेरों को इस कसौटी पर कस कर देखें. एक अच्छा ग़ज़लकार अपनी ग़ज़ल का सबसे अच्छा आलोचक खुद होता है. और मुझे आपके सामर्थ्य पर कोई शक नहीं है बाकी काम आप खुद कर लेंगें.
सादर
हौसला अफज़ाई का हृदय से आभारी हूँ आ. बृजेश जी. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
बहुत-बहुत शुक्रिया आ. सुरेन्द्र जी. हार्दिक आभार. सादर.
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