जो हमसे मोहब्बत नहीं है तो हमको
बताओ कि हमसे लजाते हो क्यूँ तुम?
निगाहें मिला कर निगाहों को अपनी
झुकाते हो हमसे छिपाते हो क्यूँ तुम?
कभी फेरना पत्तियों पर उँगलियाँ,
कभी फूल की पंखुड़ी पर मचलना
अचानक सजावट की झाड़ी को अपनी
हथेली से छूते हुए आगे बढ़ना
ये शोखी ये मस्ती दिखाते हो क्यूँ तुम,
दुपट्टा हवा में उड़ाते हो क्यूँ तुम
निगाहें................................।।
सहेली से चर्चा, मेरी ही शिकायत,
करे वो शिकायत तो नाराज़ होना
मेरी हरकतों पर नज़र अपनी रखना,
तुम्हारे मनस में तो है मेरा कोना
किसी भी हसीं से करूँ जब भी बातें,
तो चहरे की रंगत गँवाते हो क्यूँ तुम
निगाहें................................।।
मेरे गीत मेरी ग़ज़ल चुपके चुपके,
पढ़ कर के खुद को ही क्यों ढूँढते हो?
मेरे हर्फ़ के रंग में रंग अपना,
खुश्बू तुम अपनी ही क्यों ढूँढते हो?
मेरा गीत पढ़ते हुए ये बता दो,
हौले से यूँ मुस्कुराते हो क्यूँ तुम
निगाहें................................।।
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण सर बहुत बहुत आभार
आदरणीय मोहित जी बहुत-बहुत आभार आपका सुझाव सर आंखों पर
आदरणीय सुरेंद्रनाथ सर बहुत बहुत आभार जहां रुकावट है उसे दूर करने की कोशिश होगी जल्दी
आदरणीय शेख शहजाद सर सादर आभार
हार्दिक बधाई ।
आद0 पंकज कुमार मिश्र जी सादर अभिवादन। बढ़िया गीत । पर मुझे कुछ अटकाव सा महसूस हुआ। आप देख लीजियेगा। बहरहाल इस प्रस्तुति पर आपको बधाई।
बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण/रोमांटिक सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज कुमार मिश्र ' वात्स्यायन' जी।
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