221 2121 1221 212
आबाद इस चमन में तेरी शेखियाँ रहें ।
बाकी न मैं रहूँ न मेरी खूबियां रहें ।।
नफ़रत की आग ले के जलाने चले हैं वे ।
उनसे खुदा करे कि बनीं दूरियां रहें ।।
दीमक की तर्ह चाट रहे आप देश को ।
कायम तमाम आपकी वैसाखियाँ रहें ।।
बैठे जहां हैं आप वही डाल काटते ।
मौला नजर रखे कि बची पसलियां रहें ।।
अंधा है लोक तन्त्र यहां कुछ भी मांगिये ।
बस शर्त वोट काटने की धमकियां रहें ।।
टुकड़े वतन के होंगे यही खाब आपका ।
आज़ाद है वतन तो चढ़ी त्यौरियां रहें ।।
अक्सर मिले हैं सिफ्र ही कुर्बानियों के नाम ।
अहले चमन में आपकी गद्दारियाँ रहें ।।
हक छीनिये जनाब ये कानून पास कर ।
काबिल की जिंदगी में तो लाचारियाँ रहें ।।
ऊँची थी जात जिसकी वो भूँखा मरा मिला ।
कुछ तो तेरे रसूक की दुश्वारियां रहें ।।
कुछ लाइलाज़ रोग हैं इस संविधान में ।
दिन रात कर दुआ कि ये बीमारियां रहें ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 ब्रजेश कुमार ब्रज जी आभार म
आ0 कबीर सर नमन । विशेष आभार।
सही उच्चारण 'सिफ़र' है,12,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-
'अक्सर सिफ़र ही मिलते हैं क़ुर्बानियों के नाम'
वाह वाह आदरणीय..बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही...
मैं ऐसा करने जा रहा हूँ क्या ठीक रहेगा
अक्सर मिले हैं सिफ्र ही कुर्बानियों के नाम ।
आ0 कबीर सर सादर नमन क्या सिफर का वास्तविक उच्चारण सिफ्र صفر है । यदि इसे 12 पर लिया जाए तो शेर बहर से खारिज़ माना जायेगा आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
सातवें शैर में 'शिफर' को "सिफ़र" करलें ।
नवें शैर में 'भूँखा' को " भूखा" कर लें ।
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