ग़ज़ल ( निकल कर तो आओ कभी रोशनी में )
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(फऊलन-फऊलन-फऊलन-फऊलन)
चलाओ न तीरे नज़र तीरगी में |
निकल कर तो आओ कभी रोशनी में |
कमी दर्दे दिल में तो अब भी नहीं है
मज़ा आ रहा है तुम्हें दिल लगी में |
मेरी ही नहीं है यह सबकी ज़ुबा पर
लुटे क़ाफ़िले सब तेरी रहबरी में |
करूँ फ़ख़्र मैं क्यूँ न क़िस्मत पे अपनी
दिवाना हुआ हूँ तुम्हारी गली में |
यूँ ही कोई तुझ पर नहीं मर मिटा है
कोई बात तो है तेरी सादगी में |
कभी मेरी बालीं पे सज धज के आओ
क़ियामत भी मैं देख लूँ ज़िंदगी में |
लगा कर गले मुझको तस्दीक़ उसने
नई रूह फिर फूँक दी दोस्ती में |
तीरगी --अंधेरा , बालीं--सिरहाने
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब महेन्द्र कुमार साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब बलराम साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. तस्दीक़ जी. सादर.
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आद0 तस्दीक अहमद साहिब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने,बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर।
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,
बहुत ही प्यारी ग़ज़ल । हर शे'र माकूल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
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