ग़ज़ल (शिकायत भला हम करें क्या किसी से )
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(फऊलन- फऊलन-फऊलन-फऊलन)
चुने हैं ग़मे यार अपनी ख़ुशी से |
शिकायत भला हम करें क्या किसी से |
मिले सिर्फ़ धोके ही अपनों से हम को
वफ़ा अब करेंगे किसी अजनबी से |
खिज़ाओं ख़बरदार उनकी है आमद
सदा फूल खिलते हैं जिनकी हँसी से |
मिला कर नज़र से नज़र यह बताएँ
हुआ दिल ये बर्बाद किस की कमी से |
कभी दोस्तों पर न इतराना हर गिज़
सबक़ हमने सीखा तेरी बे रुखी से |
वही सिसकियाँ और वही चन्द आँसू
मिला और क्या है तेरी दिल बरी से |
यही तज्रबा भी है तस्दीक़ मेरा
बना काम बिगड़े सदा आश्ती से |
आश्ती --सुलह
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब सुरेन्द्र इंसान साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई
का बहुत बहुत शुक्रिया | किसी भी मुआम्ले में अगर लोगों के मशवरे से सुलह
की जाती है , तो अक्सर काम बिगड़ता ही है , बनता नहीं , यही उस शेर मे
इशारा किया गया है |
वाह जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है जी बधाई कबूल करे जी। सादर नमन जी ।
आख़री मिसरे में क्या कहा गया मैं समझ नही पाया। हालांकि आशती का अर्थ भी पढ़ा। सादर जी।
जनाब महेंद्र कुमार साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
बढ़िया ग़ज़ल है आ. तस्दीक़ जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय तस्दीक साहब बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है..सादर
जनाब आमोद बिंदोरी साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
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