हृदय की फुलवारी में
राग-बसंती छिड़ गया
अंग-प्रत्यंग प्रफुल्लित
आनंदित हो गया
चहुँदिश दिशा में
छा गया यौवन
लग गया बाग़ों में फिर से
सरसों , जूही , केतकी का मेला
चटखने लगी कमसिन कलियाँ
उन्हें भी प्रेम निमंत्रण मिलने लगा
मतवाले भँवरों का कारवाँ चला
देखो, कामदेव का जादू फिर चला ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोर जी । लेखन सार्थक हो गया ।
वाह ! वाह ! सरस भावों को कितनी सुन्दरता से सुशोभित किया है । वाह !
हार्दिक बधाई, भाई मोहम्मद आरिफ़ जी।
हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।
बसंत पर सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी । आपका सुझाव सर आँखों पे ।
बढ़िया प्रस्तुति है आ. मोहम्मद आरिफ़ जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
//चहुँदिश दिशा में// = "चारों दिशाओं में"
सादर.
हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।बेहतरीन गीत।
आपकी उत्साजनक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हो । बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
बहुत बढ़िया सामयिक पेशकश। आपकी लेखनी का यह रूप देख कर बहुत ख़ुशी हासिल हुई। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।
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