For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चुनावी हवा सरसराने लगी है...//अलका 'कृष्णांशी'

122 122 122 122

.

सियासत बिसातें बिछाने लगी है
चुनावी हवा सरसराने लगी है...

.

जगा फिर से मुद्दा ये पूजा घरों का
दिलों में ये नफरत बढ़ाने लगी है।
चुनावी हवा.....

.

यहाँ बाँट डाला है रंगो में मजहब
बगावत की आंधी सताने लगी है।

.

कहीं नाम चंदन कहीं चाँद दिखता
ये लाशें जमीं पर बिछाने लगी है

.

नही बात होती है अब एकता की

हमारी उमीदें घटाने लगी है
.

क्युँ इन्सां हुआ जानवर से भी बदतर
हमें शर्म ख़ुद से ही आने लगी है
.

ये क्यों मौन बैठे है आदर्शवादी
के मिट्टी वतन की बुलाने लगी है
.

जहाँ झूठे वादों का बहता है दरिया
जमीं बोझ से चरमराने लगी है

.

सियासत बिसातें बिछाने लगी है
चुनावी हवा सरसराने लगी है...

.

मौलिक एवं अप्रकाशित

अलका 'कृष्णांशी'

Views: 825

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on February 4, 2018 at 10:57am

अलका जी आदाब,ग़ज़ल नुमा गीत का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'उम्मीदें अमन की घटाने लगी है'

इस मिसरे में सही शब्द है "अम्न"

'के इंसानियत शर्म खाने लगी है'

इस मिसरे में 'शर्म खाने' का प्रयोग सही नहीं है,'शर्म' खाई नहीं जाती, ग़ौर कीजियेगा ।

Comment by नाथ सोनांचली on February 4, 2018 at 10:36am

आद0 अलका जी सादर अभिवादन।आज के संदर्भ में बेहतरीन रचना, इस प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें

Comment by Mohammed Arif on February 3, 2018 at 10:34pm

आदरणीया अलका जी आदाब,

  1.                         बहुत कटाक्षपूर्ण गीत । हर पंक्ति में तीक्ष्णता का समावेश । आज हर भारतीय के मन में आक्रोश है । गंदी सियासत ने सबकुछ तबाह कर दिया है । दुष्ट कमीनें सियासदाँ देश का खाकर देशवासियों में नफ़रत की दीवारें खड़ी कर रहे हैं । इन दुष्टों से सतर्क रहने की आवश्यकता है । बहुत ही अच्छा गीत । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service