For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर -- (गजल)-- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२ २१२२ २१२२ २१२


खूब नजरें  जो  गढ़ाये  हैं  पराये  माल पर
है भरोसा खूब उनको दोस्तो घड़ियाल पर।१।


भूख बेगारी औ'  नफरत है पसारे पाँव बस
अब भगत आजाद रोते हैं वतन के हाल पर ।२।


आज सम्मोहन  कला  हर नेता को आने लगी
है फिदा जनता यहाँ की हर सियासी चाल पर।३।


खुद  पहन  खादी  चमकते पूछता हूँ आप से
दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर।४।


ऐसा होता तो सुधर  जाते  सभी हाकिम यहाँ
वक्त जड़ता पर कहाँ है अब तमाचा गाल पर।५।


गाद  कचड़ा  और  बदबू  राज  करते  हैं  वहाँ
पंछियों की भीड़ रहती थी कभी जिस ताल पर।६।


गौर  करना  खूब  गहरे  कालिखों  से हैं  पुती
देश में नित उँगलियाँ जो उठ रही पड़ताल पर।७।


जिन  समाजों  में  बुरा  था घरजमाई बैठना
आज कब्जा है जमाई का वहीं ससुराल पर।८।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2018 at 6:27am

आ. भाई राम अवध जी, गजल पर उपस्थिति से उत्साहवर्धन के लिए आभार । बेहतरीन सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 14, 2018 at 7:15pm

आदर्णीय लक्ष्मण धामी जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आपने कहा है बधाई।

वक्त जड़ता पर कहाँ है अब तमाचा गाल पर

यहाँ 'पर' शब्द दो बार आने मिसरा खटक रह है। इसको ऐसा भी कहा जा सकता है

वक्त जड़ता ही नहीं अब तो तमाचा गाल पर। सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2018 at 7:55pm

आ. कल्पना बहन, प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2018 at 7:54pm

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से मन आश्वस्त हुआ । कमियों के बारे बताते रहिये । इस स्नेह के लिए आभार ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 6:58pm

बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीय , जिसके लिए बधाई स्वीकारें |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 13, 2018 at 3:20pm

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,सुरेन्द्र ग़ज़ल हुई है ।मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2018 at 5:00pm

आ. भाई आमोद जी, गजल का अनुमोदन और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on February 12, 2018 at 10:30am

आ मुसाफिर साहब ...बहुत ही खूब 

सादर बधाई ....नमन 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service