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नफरत के बबूलों को आँगन में उगाओ मत
पाँवों में स्वयं के अब यूँ शूल चुभाओ मत।१।
ऐसा न हो यारों फिर बन जायें विभीषण वो
यूँ दम्भ में इतना भी अपनों काे सताओ मत।२।
फितरत नहीं छिपती है कैसे भी मुखौटे हों
समझो तो मुखौटे अब चेहरों पे लगाओ मत।३।
माना कि तमस देता तकलीफ बहुत लेकिन
घर को ही जला डाले वो दीप जलाओ मत।४।
ढकने को कमी अपनी आजाद बयानों पर
फतवों के मेरे हाकिम पैबंद लगाओ मत।५।
ये वक्त तमाचा झट जड़ देगा तुम्हारे भी
हालत पे किसी की तुम गाल बजाओ मत।६।
टूटेगा तो पाँवों में गिरकर ये चुभन देगा
शीशे को तड़ी में यूँ पत्थर तो दिखाओ मत।७।
मालूम नहीं शायद तन भी है महज मिट्टी
कहते हैं घरौंदा वो मिट्टी का सजाओ मत।८)।
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सुरेंद्र जी, आभार ।
आ. भाई ब्रजेश जी , उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
आ. भाई अफ्रोज जी, गजल की प्रशंसा के लिए आभार।
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, प्रशंसा के लिए आभार ।
आ. भाई राम अवध जी, उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।
आ. भाई आरिफ जी, इस स्नेह के लिए आभार।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । बेशकीमती सलाह के लिए आभार ।
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने, आद0 समर साहब के इस्लाह से और बढिया जो गया है। बहुत वहुत बधाई आपको
बहुतखूब बहुतखूब ग़ज़ल हुई आदरणीय...सादर
जनाब लक्षमण धामी जी इस रचना पर बधाई स्वीकार करें। आदरणीय समर साहिब की बातों पर ध्यान दें।
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