For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वेलेंटाइन गिफ्ट(लघु कथा)


शहरी छोरा देहात घूमने आया है,मौसी के यहाँ।गाँव का नाम पंडितपुर है,देहात यहाँ दिखता है। उजड्ड लोग,अनपढ़ औरतें,गिल्ली-डंडा, कबड्डी और तिलंगी में अझुराये लड़के-बच्चे।बकरी चराती, मवेशियों को सानी देती लड़कियाँ, बस।गाँव के स्कूल की पढ़ाई का आलम है कि तीन-तीन बार मैट्रिक में फेल हुए तीन मास्टर दिहाड़ी जितनी रकम पर उसे संभाले हुए हैं।रही बात विद्यार्थियों की ,तो खिचड़ी के नाम पर कुछ घर से समय निकालकर आ जाते हैं।फिर खिचड़ी खतम, स्कूल खतम।मुखियाजी से मिलकर रजिस्टर -लिखाई हो जाती है।वही झुनिया जरा पढ़-लिख लेती है।नारी-शिक्षा कहें, या नारी-उद्धार,सब शब्द उसी में खप जायेंगे।'बीच चंवर में ढ़ेला' जैसी है वह।चेहरे का पानी,रंग-ढ़ंग वगैरह के चलते खोजी निगाहों में आ ही जाती है।भला चील से मांस की मोटरी(गठरी)छिपी रह सकती है भला?
तो आज वेलेंटाइन के दिन बोधू यानी शहरी बाबू का भी जी ललचा रहा है।वह भी इस दिन का आनंद उठाना चाहता है। बोधू इसलिए है कि वह ज्ञान ज्यादा बाँटता फिरता है।उसकी इसी आदत के चलते लोग उसे बोधू (ज्ञान वाला)कहने लगे।असली नाम शायद उसे भी याद न हो।
शाम को बकड़ियाँ लेकर झुनिया बगीचे की तरफ से आ रही थी।झटकते हुए बोधू उसके पास से गुजरता हुआ जल्दी में ही सही,पर सही ढंग से 'हैपी वेलेंटाइन डे' कह गया।झुनिया ने उसकी तरफ देखा।पंछी नया था,नौसिखुआ भी।वह मुस्कुरा कर रह गयी।
शाम को वह दरवाजे पर अकेली थी।मइया-बापू हाट गये थे।किसी के आने की धमक से वह पीछे मुड़ी, तो देखा शहरी बाबू खड़ा था।हाथ में कुछ छिपाये हुए था।
-क्या है',झुनकी झिझकती हुई बोली।
-‎कुछ नहीं,बस यूँ ही।
-‎ऊं?
-‎तेरे लिए गिफ्ट लाया था,वेलेंटाइन डे का।
-‎मेरे लिये क्यों?
-‎सुना है,यहाँ तू ही वेलेंटाइन समझती है।सब मूरख हैं।
-‎किसने कहा?
-‎जींस वाला सेठ।
-‎अच्छा।
-‎देख, चौदह तारीख है न? चौदह बार फता जींस लाया हूँ,एकदम यूज्ड लुक।समझी, कि नहीं?
-‎भोले हो!अनाड़ीभी।
-‎क्यों,क्या हुआ?
-‎अरे उ कलुआ ने तोहरा के पढ़ा दिया, शहरी बाबू?
-‎पढ़ा दिया, मतलब?
-‎पंद्रह बार फ़टी है यह जींस।अरे पंद्रह साल से मैं उसे कलुआ से आधे दाम पर बेच रही हूँ और वह पूरे दाम पर वेलेंटाइन के शौकीनों से इसे बेचता है।
-‎एँ?
-‎नहीं शहरी बाबू,नहीं।मैं तुझसे यह गिफ्ट नहीं ले सकती।तू बहुत भोला है रे!
बोधू की आँखें खुली रह गईं।' हाँ बापू, पहले का परिचित है यह छोरा',कहती हुई झुनकी अंदर चली गयी।
"मौलिक व अप्र का शि त"

Views: 745

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 15, 2018 at 11:18pm

आपकी बात अपनी जगह सही है। सब कुछ लिखकर हम पाठक को दें या एक ड्राफट ऐसा बनायें जिससे कथा खुद अपनी बात कहे। सर जहाँ तक लघुकथा की बात है अनआवश्यक विस्तार कथा को बोझिल ही करता है। वैसे हर रचनाकार की अपनी मौलिक सोच होती है। पर इस कथा में कसावट करेंगे तो और अधिक उभर जायेगी। सादर।

Comment by Manan Kumar singh on February 15, 2018 at 10:54pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय उस्मानीजी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 15, 2018 at 10:49pm

ग्रामीण परिवेश और ग्रामीण बोली में बढ़िया चित्रण के साथ ग्रामीण और शहरी पात्रों की सोच और अनुभव को समेटते हुए वेलेंटाइन डे संदर्भित बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। लेकिन लघुकथा संदर्भ में इससे बेहतर ड्राफ्ट तैयार करने के लिए इस रचना पर और अधिक समय दिया जा सकता है।

Comment by Manan Kumar singh on February 15, 2018 at 10:09pm

आदरणीया कल्पना जी,पृष्ठभूमि,परिवेश वगैरह कथा के आवश्यक तत्वों में शुमार होते हैं।हम सब जानते हैं कि देशकाल,वातावरण,विषयवस्तु,चरित्र चित्रण,कथोपकथन .....इत्यादि कथा के तत्व हैं।इसलिए परिवेश के वर्णन को कथा का हिस्सा नहीं मानना गैर लाजिमी नहीं होगा क्या? वैसे रचना के प्रति आपकी अनुरक्ति एवं प्रतिबद्धता का दिल से कायल हूँ मैं,सादर। 

Comment by Manan Kumar singh on February 15, 2018 at 8:16pm

सादर आभार आदरणीया।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 15, 2018 at 3:04pm

आदरणीय जहाँ तक मैं समझ पायी हूँ वहां लघुकथा में लेखक का प्रवेश वो होता है जो एक लेखक अपनी बातों को लिखता है| आपने यहाँ जो बातें कही है यह एक जगह का वर्णन है जैसे स्कूल की पढाई का वर्णन ---- यहाँ ऐसा नहीं लग रहा है कि यह कथा का हिस्सा है बल्कि यहाँ एक लेखक उसका वर्णन कर रहा है| 

लघुकथा में इस तरह के वर्णन का लेखक का प्रवेश निषेद है आदरणीय| 

सादर|

Comment by Manan Kumar singh on February 15, 2018 at 2:58pm

आदरणीया कल्पना जी! रचना को इतना नजदीक से देखने का शुक्रिया। हाँ, आपका लेखकीय प्रवेश वाला कथ्य मैं समझ नहीं पाया।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 15, 2018 at 2:43pm

आदरणीय मनन जी 

उजड्ड लोग,अनपढ़ औरतें,गिल्ली-डंडा, कबड्डी और तिलंगी में अझुराये लड़के-बच्चे।बकरी चराती, मवेशियों को सानी देती लड़कियाँ, बस।गाँव के स्कूल की पढ़ाई का आलम है कि तीन-तीन बार मैट्रिक में फेल हुए तीन मास्टर दिहाड़ी जितनी रकम पर उसे संभाले हुए हैं।रही बात विद्यार्थियों की ,तो खिचड़ी के नाम पर कुछ घर से समय निकालकर आ जाते हैं।फिर खिचड़ी खतम, स्कूल खतम।मुखियाजी से मिलकर रजिस्टर -लिखाई हो जाती है।वही झुनिया जरा पढ़-लिख लेती है।नारी-शिक्षा कहें, या नारी-उद्धार,सब शब्द उसी में खप जायेंगे।'बीच चंवर में ढ़ेला' जैसी है वह।चेहरे का पानी,रंग-ढ़ंग वगैरह के चलते खोजी निगाहों में आ ही जाती है।भला चील से मांस की मोटरी(गठरी)छिपी रह सकती है भला?
तो आज वेलेंटाइन के दिन बोधू यानी शहरी बाबू का भी जी ललचा रहा है।वह भी इस दिन का आनंद उठाना चाहता है। बोधू इसलिए है कि वह ज्ञान ज्यादा बाँटता फिरता है।उसकी इसी आदत के चलते लोग उसे बोधू (ज्ञान वाला)कहने लगे।असली नाम शायद उसे भी याद न हो।

क्या इसमें लेखकीय प्रवेश नहीं हुआ है? सादर|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
7 hours ago
Admin posted discussions
10 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
22 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
yesterday
AMAN SINHA posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
Wednesday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service