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कविता --पारदर्शिता


कितनी पारदर्शिता है
इस सदी में
किसानों की बर्बाद फसल का
तगड़ा मुआवज़ा देने की
सरकार खुलेआम घोषणा कर रही है
मगर मुआवज़ा
आत्महत्या में बदल रहा है
मीडिया सुबह की पहली किरण के साथ
दिखला रहा है
भूख-ग़रीबी , बेरोज़गारी , आँसू , सिसकी
मगर सरकार कहती है
हमने करोड़ों का बजट में
प्रावधान बढ़ा दिया है
आँकड़ों में
मृत्यु दर लगातार घट रही है
सरकारी अस्पतालों में
मौत सस्ती बिक रही है
हीरा और हवाला कारोबारी
करोड़ों की चपत लगा रहे हैं
मगर ग़रीब के पास
आधार कार्ड न होने से
राशन से वंचित किया जा रहा है
क्या इतनी पारदर्शिता काफी नहीं है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on February 19, 2018 at 9:50am

बहुत -बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी ।

Comment by vijay nikore on February 19, 2018 at 6:47am

//मगर ग़रीब के पास
आधार कार्ड न होने से
राशन से वंचित किया जा रहा है
क्या इतनी पारदर्शिता काफी नहीं है ।//

बहुत ही प्रभावशाली रचना लिखी है। आपको हार्दिक बधाई।

Comment by Mohammed Arif on February 18, 2018 at 1:12pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीया रक्षिता सिंह जी । लेखन सफल हो गया ।

Comment by रक्षिता सिंह on February 18, 2018 at 12:36pm

आदरणीय आरिफ जी, नमस्कार

बहुत ही बढ़िया कविता...

हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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