शिकार की तलाश में घूमते-घूमते अंगुलिमाल को एक साधु दिखा| उनको देखकर उसने कहा," तैयार हो जाओ तुम्हारी मृत्यु आयी है|"
साधु ने निडर होकर कहा," मेरी मौत! या तुम्हारी...?"
साधु का ऐसा उत्तर सुन कर अंगुलिमाल थोड़ा विचलित हुआ,उसने साधु से पूछा," तुमको मुझसे डर नहीं लगता? मेरे हाथ में हथ्यार देखकर भी नहीं?"
"न .... मैं क्यों डरूँ तुमसे, पर तुम हो कौन और यह माला कैसे पहनी है, इतनी सारी उँगलियाँ .......?"
"हाहाहाहाहा! हाँ यह उँगलियाँ ही हैं और मैं अंगुलिमाल हूँ,लोगों को मारने का शौक है और उनकी ऊँगली काट कर उसको इस माला में पिरो लेता हूँ, अब तक ९९ लोगों को मार दिया है और अब तुम १०० वें होगे|"
"अच्छा! पर ऐसा करके क्या हासिल होता है ....?"
"मैं रिकॉर्ड बनाना चाहता हूँ, लोगों को मार गिराने का, और इन उँगलियों से गिनती हो जाएगी न , फिर मेरा नाम गिनीज़ बुक में दर्ज करवाना चाहता हूँ | "
"ओह! तो यह बात हैं, अभी कुछ देर पहले ही एक और व्यक्ति मिला था मुझे वह भी कुछ तुम्हारी ही तरह बोल रहा था ......|" साधु ने कहा|
"कौन, कहाँ.. क्या कह रहा था .....?"
"वह तुम्हारी जैसी सोच वालों को ही तलाश रहा है, उसको भी रिकॉर्ड बनाना है ... बता रहा था कि उसने ढेरों एवार्ड्स हासिल किये हैं, अब उसको किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश है जो एवार्ड लेना चाहता है, ताकि उसको मार कर वह इस रेस में सर्व प्रथम आये और अब तक उसके तो ९९९ हो चुके हैं .. वह तुम्हारा ही पता पूछ रहा था ....| साधु ने उसको जानकारी दी|
" तो क्या अवार्ड मिलना इतना आसान हो गया है..?"
"हाँ, आज कल सब बिकाऊ है, ऐसी उँगलियाँ भी ..|"
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कल्पना जी प्रस्तुति के आरम्भ ने जो सस्पेंस पैदा किया था अंत में उतना सुखद नहीं लगा इस प्रयास पर हार्दिक बधाई सादर
आद0 कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन। लघुकथा का उत्तम प्रयास। शेष आरिफ जी कह चुके हैं। इस प्रस्तुति पर बधाई लीजिये। सादर
बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब आरिफ़ साहिब की बातों का संज्ञान लें ।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,
पुरस्कारों की ख़रीद-फरोख़्त आम हो चुकी है । आजकल तो बस" तू मुझे पुरस्कार देता तू मुझे कुछ चुका" वाली संस्कृति प्रचलन में । योग्यता नहीं धन की महिमा प्रमुख हो गई है । मैं सोच रहा था कि कथानक किसी अच्छे अंत की ओर ले जाएगा मगर आपने इसे पुरस्कार से जोड़कर कथानक का क़द घटा दिया । शायद आप इस कथानक को
कहीं और ले जाना चाहती थी मगर अंत की हड़बड़ाहट में कथानक कहीं और चला गया ।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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