For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़ामोशी की ज़ुबान (लघुकथा)

कभी देखा है खुद को आईने में? तुम्हारी सहेली शीला को देखो,खुद को कितना मेन्टेन किया हुआ है उसने| और तुम! तुम्हारी शकल पर हमेंशा  बारह बजते है| तंग आ गया हूँ तुम्हारी मनहूस शकल देखते देखते|" ऑफिस से घर आये शेखर के ऐसे विचार जानकार शीला खुद को न रोक पायी, उसने कुछ कहने को मुँह खोला ही था कि उसकी जेठानी ने कहा," अरे देवर जी! गर यह ऐसा न करेगी तो लोगों को पता कैसे चलेगा कि हमलोग इसको परेशान करते हैं| यह सब इसकी नौटंकी है, मुझे देखो दिन भर काम करती हूँ पर आपके भैया! मजाल है अब तक उन्होंने कुछ कहा हो मेरी खूबसूरती को लेकर| देखा हैं न उनको मेरे अलावा वह किसी और औरत की तरफ देखते भी नहीं| और आप तो ............."
शीला ने अपने पति की तरफ देखा और कहा," शेखर! क्या आपको मुझमे कमियां ही नज़र आती है? मुझमे कोई चीज ऐसी नहीं जो आपके मन को भाति हो?" और वह चुपचाप उसको देखती रही|
शेखर ने कहा," तुम्हारी शालीनता और सहन शक्ति  मुझे पसंद है,तुमने आज तक कभी ऊँची आवाज़ में नहीं बोला है| "
शीला का चेहरा खिल गया, और उसने कहा," आज मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ, और भाभी जी आप भी यहीं रुकें|"
दोनों एक दुसरे को देखने लगे आखिर ऐसी कौन सी बात है जो शीला कहने वाली है|
शीला ने अपना मोबाइल निकाला और उसने शेखर और अपनी जेठानी को अपने अपने व्हात्सप्प खोलने को बोला: उसमें जो पढ़ा वो कुछ यूँ था :' मेरी प्यारी शीला, तुम्हारी सुन्दरता ने मुझे तुम्हारी तरफ आकर्षित किया है, और मैं रात-दिन तुम्हारे ख्यालों में रहता हूँ, मेरी पत्नी, और तुम्हारी जे ठानी! उसको अपनी गोरी चमड़ी से बहुत प्यार है पर उसकी जुबान तो तुम जानती ही हो, मुझसे तो ऐसे पेश आती है जैसे मैं उसका पाला हुआ कुत्ता हूँ... और तुम्हारा पति जो तुम्हारी सहेली की तरफ आकर्षित हो रहा है, क्यों न हम एक हो जाएँ ..... '
नीचे नाम पढ़कर दोनों ही चौंक गए, शीला की जेठानी की आँखों से अंगारे बरस रहे थे, " तो यह गुल खिला रहे हैं तुम्हारे जेठजी और शीला तुम.....!"

मैंने कई बार आप दोनों से कहना चाहा, पर आप दोनों अपनी दुनिया में ही रहे, और आप दोनों ने ही मेरी परेशानियों को समझने का प्रयास ही नहीं किया| मैंने अपने मायके जाने का फैसला कर लिया है| "
"ऐसे न देखो शेखर, मैंने पुलिस में रिपोर्ट कर दी है, मेरी ख़ामोशी को मेरी कमजोरी समझी गयी, पर .....|"
"ओह शीला! मुझे माफ़ करदो| मेरे ही घर में मेरा भाई तुमपर बुरी नज़र डाले था और मैं ... |"
"बहुत देर कर दी शेखर तुमने.."

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 656

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on March 26, 2018 at 8:20pm

आदरणीय कल्पना जी, यदि इस लघुकथा पर आपने थोड़ी और मेहनत की होती तथा इसकी त्रुटियों को सुधार दिया होता तो यह एक बेहतरीन लघुकथा हो सकती थी।आपके इस प्रयास हेतु हार्दिक बधाई।

Comment by Mohammed Arif on March 26, 2018 at 1:05pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,

                                बहुत ही बढ़िया लघुकथा । पात्रानुकूल संवाद भी अच्छे । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं जो आसानी से संशोधित की जा सकती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on March 26, 2018 at 12:20pm

बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी है आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 26, 2018 at 11:05am

बड़ी अच्छी चोट करती हुई लघु कथा के लिए ढेरो बधाइयाँ..

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 25, 2018 at 8:07pm

आधुनिकता की चकाचौंध में घर-घर की कहानी। बदज़ुबानी या ख़ामोशी की ज़ुबानी। बढ़िया उम्दा सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुभकामनाएं आदरणीया कल्पना भट्ट जी।

Comment by somesh kumar on March 25, 2018 at 3:22pm

अच्छी लघुकथा है |कुछ टंक-त्रुटियाँ  हैं उन्हें सही कर लें |

शायद जेठानी की आत्मस्तुति के तुरंत बाद पुलिस का आगमन एवं उससे जेठ की मंशा का राज खोलकर लघुकथा को और प्रभावी बनाया जा सकता था |और शायद इसमें" वह जो आज तक भीगी बिल्ली थी अब उसमें शेर बस चुका था |" जैसे विश्लेषण की अंत में जरूरत ही नहीं होनी चाहिए |यह तो शीर्षक खुद बोल रहा है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service