कभी देखा है खुद को आईने में? तुम्हारी सहेली शीला को देखो,खुद को कितना मेन्टेन किया हुआ है उसने| और तुम! तुम्हारी शकल पर हमेंशा बारह बजते है| तंग आ गया हूँ तुम्हारी मनहूस शकल देखते देखते|" ऑफिस से घर आये शेखर के ऐसे विचार जानकार शीला खुद को न रोक पायी, उसने कुछ कहने को मुँह खोला ही था कि उसकी जेठानी ने कहा," अरे देवर जी! गर यह ऐसा न करेगी तो लोगों को पता कैसे चलेगा कि हमलोग इसको परेशान करते हैं| यह सब इसकी नौटंकी है, मुझे देखो दिन भर काम करती हूँ पर आपके भैया! मजाल है अब तक उन्होंने कुछ कहा हो मेरी खूबसूरती को लेकर| देखा हैं न उनको मेरे अलावा वह किसी और औरत की तरफ देखते भी नहीं| और आप तो ............."
शीला ने अपने पति की तरफ देखा और कहा," शेखर! क्या आपको मुझमे कमियां ही नज़र आती है? मुझमे कोई चीज ऐसी नहीं जो आपके मन को भाति हो?" और वह चुपचाप उसको देखती रही|
शेखर ने कहा," तुम्हारी शालीनता और सहन शक्ति मुझे पसंद है,तुमने आज तक कभी ऊँची आवाज़ में नहीं बोला है| "
शीला का चेहरा खिल गया, और उसने कहा," आज मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ, और भाभी जी आप भी यहीं रुकें|"
दोनों एक दुसरे को देखने लगे आखिर ऐसी कौन सी बात है जो शीला कहने वाली है|
शीला ने अपना मोबाइल निकाला और उसने शेखर और अपनी जेठानी को अपने अपने व्हात्सप्प खोलने को बोला: उसमें जो पढ़ा वो कुछ यूँ था :' मेरी प्यारी शीला, तुम्हारी सुन्दरता ने मुझे तुम्हारी तरफ आकर्षित किया है, और मैं रात-दिन तुम्हारे ख्यालों में रहता हूँ, मेरी पत्नी, और तुम्हारी जे ठानी! उसको अपनी गोरी चमड़ी से बहुत प्यार है पर उसकी जुबान तो तुम जानती ही हो, मुझसे तो ऐसे पेश आती है जैसे मैं उसका पाला हुआ कुत्ता हूँ... और तुम्हारा पति जो तुम्हारी सहेली की तरफ आकर्षित हो रहा है, क्यों न हम एक हो जाएँ ..... '
नीचे नाम पढ़कर दोनों ही चौंक गए, शीला की जेठानी की आँखों से अंगारे बरस रहे थे, " तो यह गुल खिला रहे हैं तुम्हारे जेठजी और शीला तुम.....!"
मैंने कई बार आप दोनों से कहना चाहा, पर आप दोनों अपनी दुनिया में ही रहे, और आप दोनों ने ही मेरी परेशानियों को समझने का प्रयास ही नहीं किया| मैंने अपने मायके जाने का फैसला कर लिया है| "
"ऐसे न देखो शेखर, मैंने पुलिस में रिपोर्ट कर दी है, मेरी ख़ामोशी को मेरी कमजोरी समझी गयी, पर .....|"
"ओह शीला! मुझे माफ़ करदो| मेरे ही घर में मेरा भाई तुमपर बुरी नज़र डाले था और मैं ... |"
"बहुत देर कर दी शेखर तुमने.."
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय कल्पना जी, यदि इस लघुकथा पर आपने थोड़ी और मेहनत की होती तथा इसकी त्रुटियों को सुधार दिया होता तो यह एक बेहतरीन लघुकथा हो सकती थी।आपके इस प्रयास हेतु हार्दिक बधाई।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,
बहुत ही बढ़िया लघुकथा । पात्रानुकूल संवाद भी अच्छे । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं जो आसानी से संशोधित की जा सकती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी है आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बड़ी अच्छी चोट करती हुई लघु कथा के लिए ढेरो बधाइयाँ..
आधुनिकता की चकाचौंध में घर-घर की कहानी। बदज़ुबानी या ख़ामोशी की ज़ुबानी। बढ़िया उम्दा सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुभकामनाएं आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
अच्छी लघुकथा है |कुछ टंक-त्रुटियाँ हैं उन्हें सही कर लें |
शायद जेठानी की आत्मस्तुति के तुरंत बाद पुलिस का आगमन एवं उससे जेठ की मंशा का राज खोलकर लघुकथा को और प्रभावी बनाया जा सकता था |और शायद इसमें" वह जो आज तक भीगी बिल्ली थी अब उसमें शेर बस चुका था |" जैसे विश्लेषण की अंत में जरूरत ही नहीं होनी चाहिए |यह तो शीर्षक खुद बोल रहा है
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