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ग़ज़ल अजब सी बेकरारी हो रही है

1222 1222 122

किसी पर जां निसारी हो रही है ।

नदी अश्कों से खारी हो रही है ।।

सुकूँ की अब फरारी हो रही है ।

अजब सी बेकरारी हो रही है ।।

तुम्हारे हुस्न पर है दाँव सारा ।

यहाँ दुनियां जुआरी हो रही है ।।

शिकस्ता अज़्म है कुछ आपका भी ।

सजाये मौत जारी हो रही है ।।

जली है फिर कोई बस्ती वतन की ।

फजीहत फिर हमारी हो रही है ।।

यहां तहजीब का आलम न पूछो।

वफ़ा की ख़ाकसारी हो रही है ।।

कहा था मत पियो इतना जियादह ।

बड़ी लम्बी खुमारी हो रही है ।।

जरा पर्दे में रहना सीख लो तुम ।

नज़र कोई शिकारी हो रही है ।।

कतारें लग चुकीं रिन्दों की देखो।

अदा से आबकारी हो रही है ।।

कटेगी किस तरह ये जिंदगी अब ।

दुआओं की भिखारी हो रही है ।।

सुना है महफ़िलो में आजकल तो ।

बड़ी चर्चा तुम्हारी हो रही है ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2018 at 9:36am

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 26, 2018 at 11:05am

आ0 दण्डपाणि नाहक जी सादर आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 26, 2018 at 11:04am

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 26, 2018 at 11:03am

 सादर नमन के साथ आभार

Comment by Samar kabeer on February 25, 2018 at 10:09pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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