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हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम,
कुछ भी कहो युँ पहले तो इंसान हैं सनम ।
माना मरीज़ आज मुहब्बत के हो गए,
पर अपनी ज़िन्दगी के सुलेमान हैं सनम ।
ये जो हमारी आंखों में हैं अश्क़ देखिए,
आँसू न इनको समझो ये तूफान हैं सनम ।
हम भूल जाएँगे तुम्हें मुमकिन नहीं मगर,
ऐसा लगे समझना परेशान हैं सनम ।
अब छोड़ दर्द-ए-इश्क़ कभी दर्द-ए-आश्की
इस ज़िन्दगी में अपने भी अरमान हैं सनम ।
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मौलिक व अप्रकाशित
हर्ष महाजन
Comment
आदरनीय धामी जी ग़ज़ल में शिर्कत और हौंसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
बहुत खूब...
आदरणीय राम अवध जी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय सुरेंद्र जी आदाब । मेरी इस कृति पर आए बहुत बहुत शुक्रिया ।जी सही कहा आपने । देखने को तो ये एक छोटी दी ग़ज़ल रही ।लेकिन जिन बारीकियों को आदरणीय समर सर ने हलके में आसानी से मगर गहराई से समझा दिया । दिल से आभार ।
सादर
ऐसी चर्चा से हम.सबका ज्ञान वर्धन हुआ। आदरणीय समर कबीर साहब के हम सब आभारी हैं।
आद0 हर्ष महाजन जी सादर अभिवादन। आपकी ग़ज़ल के हवाले से बढिया चर्चा हुई। इस प्रयास के लिए बधाई।
आदरणीय समर जी आपका
बहुत बहुत शुक्रिया सर ।
यूँ ही अपनी सरपरस्ती बनाये रखियेगा सर ।
सादर
तीसरे शेर में एक त्रुटि सर 'ये" मिस हो गया ।
तीसरा शेर के सानी में यूँ पढ़िए सर.....
"आंसू न इनको समझो ये तूफान हैं सनम ।'
तीसरे शैर के सानी मिसरे में एक शब्द लिखना भूल गए:-
'आँसू न इनको समझो ये तूफ़ान हैं सनम'
4थे का सानी यूँ करें :-
'ऐसा लगे समझना,परेशान हैं सनम'
बाक़ी ठीक है ।
आदरणीय समर सर आपके मार्गदर्शन से ग़ज़ल को अंजाम तक पहुचाने की और कोशिश की है । ज़र देखिए सर
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हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम,
कुछ भी कहो युँ पहले तो इंसान हैं सनम ।
माना मरीज़ आज मुहब्बत के हो गए,
पर अपनी ज़िंदगी के सुलेमान हैं सनम ।
ये जो हमारी आंखों में हैं अश्क़ देखिए,
आँसू न इनको समझो तूफान हैं सनम ।
हम भूल जाएँगे तुम्हें मुमकिन नहीं मगर,
फिर भी लगे समझना परेशान हैं सनम ।
अब छोड़ दर्द-ए-इश्क़ कभी दर्द-ए-आश्की,
इस ज़िन्दगी में अपने भी अरमान हैं सनम ।
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सादर ।
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