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आप मेरी बेबसी पर मुस्कुराते जाइये

2122 2122 2122 212


इस नए हालात पर तुहमत लगाते जाइये ।
आप मेरी बेबसी पर मुस्कुराते जाइये ।।

आंख पर पर्दा अना का खो गयी शर्मो हया ।।
रंग गिरगिट की तरह यूँ ही दिखाते जाइये ।।

तिश्नालब हैं रिन्द सारे मैकदा है आपका ।
जाम रब ने है दिया पीते पिलाते जाइये ।।

इस चिलम में आग है गम को जलाने के लिए ।
फिक्र अपनी भी धुएँ में कुछ उड़ाते जाइये ।।

अश्क जो दिखता नहीं वो शेर में छलका बहुत ।
चन्द मिस्रे जो कहे थे वो सुनाते जाइये ।।

साथ सारा सिर्फ मरघट तक रहेगा आपका ।
कुछ खुदा के साथ भी रिश्ता बनाते जाइये ।।

लोग सारे आपके हैं आपकी सरकार है ।
जुल्म की यह इंतिहा लेकिन छुपाते जाइये ।।

रह न जाये आपसे मेरा कोई शिकवा गिला ।
फर्ज कुछ ऐसा मुहब्बत का निभाते जाइये ।।

है बड़ी चर्चा में शायद आपकी बेपर्दगी ।
आशिकों की है गली बस दिल जलाते जाइये ।।

है तसव्वुर चाँद का तो हुस्न होगा बेनकाब ।
बेखुदी में उस ग़ज़ल को गुनगुनाते जाइये ।।

जा रहे हैं रूठ कर फिर रोकना मुमकिन कहाँ ।
दिल से कैसे जाएंगे यह तो बताते जाइये ।।

---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2018 at 7:19pm

अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय..

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 7, 2018 at 7:40pm

आदरणीय कबीर सर इस्लाह के लिए सप्रेम आभार और नमन ।

Comment by Samar kabeer on March 7, 2018 at 12:22pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के ऊला मिसरे में 'हालात' शब्द बहुवचन है, इसलिये मिसरा यूँ कर लें:-

'आज के हालात पर तुहमत लगाते जाइये'

9वें शैर के ऊला में 'शायद' की जगह "देखो" कर लें ।

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