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ग़ज़ल (वो लगता है आफ़ात करने चले हैं )

(फ़ऊलन--फ़ऊलन--फ़ऊलन--फ़ऊलन)

शुरूए इनायात करने चले हैं |
वो लगता है आफ़ात करने चले हैं |

ख़ुदा ख़ैर पाबंदियाँ हैं नज़र पर
मगर वो मुलाक़ात करने चले हैं |

यक़ीं ही नहीं उम्र ढलने का उनको
जो तब्दील मिर आत करने चले हैं |

खिलाना है फ़िरक़ा परस्तों को मुंह की
वो लोगों फ़सादात करने चले हैं |

मुहब्बत के अंजाम से हैं वो ग़ाफ़िल
जो इसकी शुरुआत करने चले हैं |

भला किस तरह कर दें उसको नुमायाँ
सनम से जो हम बात करने चले हैं |

नज़र में अज़ीज़ों को तस्दीक़ रखना
वो फिर बे जा हरकात करने चले हैं |

आफ़ात --मुसीबत , मिर आत --आइना

( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 8, 2018 at 10:13pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब ,ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 8, 2018 at 9:40pm
ख़ुदा ख़ैर पाबंदियाँ हैं नज़र पर
मगर वो मुलाक़ात करने चले हैं |.. क्या कहने
-
मुहब्बत के अंजाम से हैं वो ग़ाफ़िल
जो इसकी शुरुआत करने चले हैं |... बहुत खूब
जनाब तस्दीक साहब,
मुरस्सा ग़ज़ल हुई है मुबारक़बाद कुबूल फरमाएं...
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 8, 2018 at 9:39pm

जनाब नीलेश नूर साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 8, 2018 at 9:38pm

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2018 at 9:20pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है आ. तस्दीक अहमद साहब
बधाई 

Comment by Mohammed Arif on March 8, 2018 at 8:58pm

खिलाना है फ़िरक़ा परस्तों को मुंह की
वो लोगों फ़सादात करने चले हैं |   वाह! वाह!! बहुत ही उम्दा शे'र ।

दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 8, 2018 at 8:44pm

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 7:33pm

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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