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माँ शब्द पर २ क्षणिकाएं :

माँ शब्द पर २ क्षणिकाएं :

1.

मैं
जमीं थी
आसमाँ हो गयी

एक पल में
एक
जहाँ हो गयी

अंकुरित हुआ
एक शब्द
और मैं
माँ हो गयी

...........................

२.

ज़िंदा रहते हैं
सदियों
फिर भी
लम्हे
बेज़ुबाँ होते हैं

छोड़ देती हैं
साथ
साँसें
जब ज़िस्म
फ़ना होते हैं

ज़िंदगी
को जीत लेते हैं
मौत से
जो शब्द
वो

माँ होते हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on March 12, 2018 at 11:16pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब । आपकी प्रस्तुत रचनाओं में अहसास मर्म स्पर्शी लगे । "माँ" विशेष पर बशूट ही उत्तम रचनाएं ।

सादर @

Comment by Samar kabeer on March 12, 2018 at 10:14pm

जनाब सुशील जी,आरिफ़ साहिब ने जो भी लिखा वो ओबीओ की महब्बत में लिखा उनक्स उद्देश्य क़तई आपको ठेस पहुंचाने का नहीं था,आप जब भी समय मिलता है मंच पर सक्रिय रहते ही हैं,उम्मीद है आप इस सम्बन्ध में अपने विचार ज़रूर बदलेंगे ।

Comment by Mohammed Arif on March 12, 2018 at 4:06pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,

                                  इस मंच पर किसी को भी अपमानित या सम्मानित होने वाली कोई बात ही नहीं है । ओबीओ सीखने-सिखाने का का मंच है । मैं ख़ुद भी सीखने की अवस्था का सबसे छोटा विद्यार्थी हूँ । मैं तो एक विनम्र अपील कर रहा था कि साहित्य की सभी विधाओं को समान टिप्पणियाँ मिलें ताकि सभी रचनाकारों को संबल मिलें । आपका यह कहना कि मैं अपने आप को सम्मानित सदस्य नहीं अपमानित सदस्य महसूस कर रहा हूँ । आदरणीय आपने ऐसा कैसे सोच लिया । ओबीओ पर सभी समान है , सभी सम्मानित है । आप ऐसा क्यों सोचते हैं । किसी को आहत करना मेरा कतई मक़सद नहीं है । मंच पर आपकी हमारी सक्रियता बनी रहे यही मेरा उद्देश्य था । ऐसा टिप्पणी तो आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी और आदरणीया राहिला जी को भी कर चुका हूँ । सादर।

Comment by Sushil Sarna on March 12, 2018 at 2:43pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... सृजन भाव को मन मुदित करती प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। आप की बात से मैं पूर्णतः सहमत हूँ। दूसरी रचना को शब्द भाव को लघु रूप में व्यक्त करने के कारण मैंने उसे क्षणिका का नाम दे दिया। आपका हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on March 12, 2018 at 2:40pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब। .. सृजन को मान देने का दिल से शुक्रिया। क्षणिका मेरे विचार में कम से कम शब्दों में किसी भाव को ऐसे व्यक्त करना है जो दिल को छू जाए। क्षणिका को केवल व्यंग्य या कटाक्ष की परिधि में उचित नहीं। इस बाबत मैं आदरणीय समर कबीर साहिब की टिप्पणी से सहमत हूँ। आपके द्वारा दिया गए नोट की मैं यथा संभव पालना करने की कोशिश करूंगा। हाँ, लेकिन सर एक बात अवशय कहूंगा आज मैं अपने आपको इस मंच का सम्मानित नहीं अपमानित सदस्य महसूस कर रहा हूँ। हर मानवीय परिस्थितियां एक सी नहीं रहती। मेरी हर संभव कोशिश रहती है कि मैं सक्रिय रूप से भाग लूँ यहां तक कि मैं कभी कभी सृजन पर आभार व्यक्त करने भी दो दो दिन तक नहीं आ पाता। आपका आक्षेप कि टिप्पणियां बटोरकर ... अच्छा नहीं लगा। बहुत बार मेरे सृजन को कोई भी टिप्पणी नहीं मिली या एक या दो मिली लेकिन इससे मैं हताहत नहीं हुआ और अपने सृजन को अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रेषित करता रहा और अन्य रचनाओं पर भी अपनी उपस्थिति देता रहा। ख़ैर, आपको बुरा लगा हो तो क्षमा मांगता हूँ पर आपकी टिप्पणी से आहत ज़रूर हुआ हूँ। सादर .....

Comment by Samar kabeer on March 12, 2018 at 12:33pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,आपकी रचना में पहली वाली तो क्षणिका कह सकते हैं,लेकिन दूसरी मेरे ख़याल में क्षणिका की श्रेणी में नहीं आएगी,ये भी आवश्यक नहीं कि क्षणिका में सिर्फ़ कटाक्ष हो, क्षणिका का अर्थ है छोटी बात,वैसे भाव पक्ष दोनों में मज़बूत और सराहनीय है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on March 12, 2018 at 11:01am

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,

  •                                माँ की गरिमा-गौरव और महत्व को रेखांकित करती बेहतरीन छोटी-छोटी कविताएँ । इन्हें मैं छोटी कविताएँ कहना ज़ियादा पसंद करूँगा क्योंकि क्षणिकाओं में व्यंग्य या कटाक्ष होता है ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
  • नोट :--ओबीओ सीखने-सिखाने का साहित्यिक परिवार का सशक्त मंच है । आपकी मेरी तथा अन्य साथियों की टिप्पणियों से बहुत सीखने को मिलता है । लेकिन कुछ साथी ब्लॉग पोस्ट पर अपनी रचना पोस्ट करते हैं और टिप्पणियाँ बटोरकर नदारद हो जाते हैं । ब्लॉग पोस्ट पर प्रतीक्षारत साहित्य की अन्य विधाओं पर टिप्पणी करने से गुरेज़ करते हैं । केवल अपनी पोस्ट तक सीमित रहते हैं । आख़िर ऐसा क्यों ? क्यों न आप सबको टिप्पणियाँ देने की परंपरा शुरू करें । सादर ।

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