माँ शब्द पर २ क्षणिकाएं :
1.
मैं
जमीं थी
आसमाँ हो गयी
एक पल में
एक
जहाँ हो गयी
अंकुरित हुआ
एक शब्द
और मैं
माँ हो गयी
...........................
२.
ज़िंदा रहते हैं
सदियों
फिर भी
लम्हे
बेज़ुबाँ होते हैं
छोड़ देती हैं
साथ
साँसें
जब ज़िस्म
फ़ना होते हैं
ज़िंदगी
को जीत लेते हैं
मौत से
जो शब्द
वो
माँ होते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब । आपकी प्रस्तुत रचनाओं में अहसास मर्म स्पर्शी लगे । "माँ" विशेष पर बशूट ही उत्तम रचनाएं ।
सादर @
जनाब सुशील जी,आरिफ़ साहिब ने जो भी लिखा वो ओबीओ की महब्बत में लिखा उनक्स उद्देश्य क़तई आपको ठेस पहुंचाने का नहीं था,आप जब भी समय मिलता है मंच पर सक्रिय रहते ही हैं,उम्मीद है आप इस सम्बन्ध में अपने विचार ज़रूर बदलेंगे ।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,
इस मंच पर किसी को भी अपमानित या सम्मानित होने वाली कोई बात ही नहीं है । ओबीओ सीखने-सिखाने का का मंच है । मैं ख़ुद भी सीखने की अवस्था का सबसे छोटा विद्यार्थी हूँ । मैं तो एक विनम्र अपील कर रहा था कि साहित्य की सभी विधाओं को समान टिप्पणियाँ मिलें ताकि सभी रचनाकारों को संबल मिलें । आपका यह कहना कि मैं अपने आप को सम्मानित सदस्य नहीं अपमानित सदस्य महसूस कर रहा हूँ । आदरणीय आपने ऐसा कैसे सोच लिया । ओबीओ पर सभी समान है , सभी सम्मानित है । आप ऐसा क्यों सोचते हैं । किसी को आहत करना मेरा कतई मक़सद नहीं है । मंच पर आपकी हमारी सक्रियता बनी रहे यही मेरा उद्देश्य था । ऐसा टिप्पणी तो आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी और आदरणीया राहिला जी को भी कर चुका हूँ । सादर।
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब .... सृजन भाव को मन मुदित करती प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। आप की बात से मैं पूर्णतः सहमत हूँ। दूसरी रचना को शब्द भाव को लघु रूप में व्यक्त करने के कारण मैंने उसे क्षणिका का नाम दे दिया। आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब। .. सृजन को मान देने का दिल से शुक्रिया। क्षणिका मेरे विचार में कम से कम शब्दों में किसी भाव को ऐसे व्यक्त करना है जो दिल को छू जाए। क्षणिका को केवल व्यंग्य या कटाक्ष की परिधि में उचित नहीं। इस बाबत मैं आदरणीय समर कबीर साहिब की टिप्पणी से सहमत हूँ। आपके द्वारा दिया गए नोट की मैं यथा संभव पालना करने की कोशिश करूंगा। हाँ, लेकिन सर एक बात अवशय कहूंगा आज मैं अपने आपको इस मंच का सम्मानित नहीं अपमानित सदस्य महसूस कर रहा हूँ। हर मानवीय परिस्थितियां एक सी नहीं रहती। मेरी हर संभव कोशिश रहती है कि मैं सक्रिय रूप से भाग लूँ यहां तक कि मैं कभी कभी सृजन पर आभार व्यक्त करने भी दो दो दिन तक नहीं आ पाता। आपका आक्षेप कि टिप्पणियां बटोरकर ... अच्छा नहीं लगा। बहुत बार मेरे सृजन को कोई भी टिप्पणी नहीं मिली या एक या दो मिली लेकिन इससे मैं हताहत नहीं हुआ और अपने सृजन को अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रेषित करता रहा और अन्य रचनाओं पर भी अपनी उपस्थिति देता रहा। ख़ैर, आपको बुरा लगा हो तो क्षमा मांगता हूँ पर आपकी टिप्पणी से आहत ज़रूर हुआ हूँ। सादर .....
जनाब सुशील सरना जी आदाब,आपकी रचना में पहली वाली तो क्षणिका कह सकते हैं,लेकिन दूसरी मेरे ख़याल में क्षणिका की श्रेणी में नहीं आएगी,ये भी आवश्यक नहीं कि क्षणिका में सिर्फ़ कटाक्ष हो, क्षणिका का अर्थ है छोटी बात,वैसे भाव पक्ष दोनों में मज़बूत और सराहनीय है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online