खुशियों का बँटवारा
“पापा,बड़े कमरे में चलों “ मनीष ने मैच देख रहे अजीत गुप्ता का हाथ खींचते हुए कहा
“अरे चल रहा हूँ मेरे लाडले,इतनी उतावली क्या है !”
और कमरे में प्रवेश करते ही- सरप्राइज !
“क्यों पापा कैसी लगी डेकोरेशन !” मझली बेटी आनंदी ने पूछा
“एक्सीलेंट!”
“अभी एक और सरप्राइज है “ मिसीज अजीत ने चॉकलेट केक आगे बढ़ाते हुए कहा
“यार ! तुम भी बच्चों के साथ बच्ची बन रही हो |क्या यह उम्र है बर्थडे मनाने की ---केक काटने की—“
“खुशिया मनाने की कोई उम्र होती है क्या ---अब चलों जल्दी से केक काटों “मिसीज अजीत ने मचलते हुए कहा
“ठीक है ! पर माँ-पापा को तो बुला लो -----जा मनीष बुला ला दादा-दादी को –“
“रुकों मनीष ---क्या जरूरत है बुढे-बुढ़िया की –---क्या दे देंगे अब वो तुम्हें “
“यार वो मेरे माँ-बाप हैं ---उनकी दुआ ही बहुत बड़ी चीज़ है |”
“और हमारी मेहनत ? “ मिसीज अजीत ने दोनों बेटियों और अपनी तरफ़ ईशारा करते हुए कहा
“ठीक है ----जिसमें सरकार खुश !---आओं केक काटा जाए |” मिस्टर अजीत ने मिसीज का हाथ पकड़ते हुए कहा
फिर-“हैपी बर्थडे टू यू-हैपी बर्थ डे टू यू !”
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Comment
जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
अच्छी लघुकथा है, लेकिन जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब के सुझावों पर अमल कीजिएगा जनाब सोमेश कुमार जी।
आदरणीय सोमेश कुमार जी आदाब,
लघुकथा का बहुत बेहतरीन प्रयास । कुछ बातें साझा करना चाहूँगा:-
(1) लघुकथा में थोड़ी हड़बड़ाहट है । कथानक को आराम से आगे बढ़ाइए ।
(2) वर्तनीगत ढेरों अशुद्धियाँ हैं । उन्हें सुधारें ।
(3) कथानक आपने बहुत अच्छा चुना मगर ऐसे कथानक पर ढेरों लघुकथाएँ लिखीं जा चुकी है अत: कथानक में ताज़गी पैदा कीजिए ।
(4) विराम चिन्हों के प्रयोग में भी सावधानी बरती गई है । सही विराम चिन्हों का चयन आवश्यक है ।
आशा है आप मेरी उक्त बातों से सहमत होंगे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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