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 माना ताज  मिसाल  है , सुंदरता की  एक l

 चीख़ें गूँजीं हैं यहाँ , करुणा भरी अनेक ll

 करुणा भरी अनेक , यहाँ पर लिखीं कहानी l

 कटे   करों  से खून, बहा  है  बनकर  पानी ll

 'अना'  जान ले  सत्य, ताज  का हर दीवाना l

 प्रेम   निशानी  ताज, अजब है जग में माना ll

  - अनामिका सिंह  'अना'

    मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Anamika singh Ana on March 21, 2018 at 3:46pm
  • आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी , सादर अभिवादन , मेरे प्रयास की सराहना हेतु आपका अतिशय आभार..किसी भी विषय पर व्यक्तिगत राय विभिन्न व्यक्तियों की अलग - अलग हो सकती है..सहमति असहमति होती ही है..पुन : मेरी प्रस्तुति को सराहने हेतु आभार स्वीकार  कीजिए! 
Comment by नाथ सोनांचली on March 20, 2018 at 7:32pm

आद0 अनामिका जी सादर अभिवादन। बढिया कुण्डलिया छंद का प्रयास। शेष गुणीजनों ने बढिया सलाह भी दी है। पर व्यक्तिगत रूप से मैं आपके कथ्य का समर्थन नहीं करता। और सुनी सुनाई बातों पर यकीन भी नहीं करता। बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Anamika singh Ana on March 19, 2018 at 1:50pm

आदरणीया प्रतिभा जी , प्रस्तुत छंद को स्नेह देने हेतु अतिशय आभार आपका , निश्चित ही ताज भारत का गौरव बढ़ाता ऐतिहासिक स्मारक है.. 

मेरा मंतव्य नहीं था कि मेरी रचना से धरोहर विवादित हो..ताज निर्माण के नेपथ्य में जो हुआ वही विचार लिखा ..सादर 

Comment by Anamika singh Ana on March 19, 2018 at 12:38pm

आदरणीय अखिलेश जी , प्रस्तुत छंद की सराहना हेतु अतिशय आभार आपका ..आपने कुछ शब्दों से नवीन रूप दे दिया कुंडलिया को..सादर

Comment by pratibha pande on March 18, 2018 at 8:01pm

ताज विषय लेकर सुन्दर सुगढ़ कुण्डलिया छंद के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया ..अनामिका जी .  मेरी व्यक्तिगत राय में देश की  एतिहासिक धरोहरों  को विवादों से परे रखना चाहिए 

 ...

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 17, 2018 at 3:47pm

आदरणीया  अनामिकाजी

हृदय से बधाई, लाखों के मन की बात कहती सुंदर कुण्डलिया। मिडिल स्कूल में इस घटना को पढ़कर मैं द्रवित हो उठा था। उसी उम्र में यह संकल्प लिया था कि कभी ताजमहल नहीं देखूंगा और अब तक इसे निभाते आया हूँ। कुछ पंक्तियों को मैं यूँ लिखता.....

 

माना ताज  मिसाल  है , सुंदरता की  एक l

चीख गूँजती हैं यहाँ , करुणा भरी अनेक ll ... [ताजमहल देखकर सहृदय व्यक्ति को आज भी यह आभास होता है, यही बात लोग जलियावालाँ बाग के संबंध में भी कहते हैं।

 करुणा भरी अनेक ,  इसी पर लिखी कहानी l

 कटे  करों  से खून,  बहा  है  बनकर  पानी ll

 'अना'  जान ले  सत्य, ताज  का हर दीवाना l

 प्रेम  निशानी  ताज,  भूलवश  हमने माना ll

सादर

 

Comment by Samar kabeer on March 17, 2018 at 3:26pm

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

Comment by Anamika singh Ana on March 17, 2018 at 3:08pm

आदरणीय समर कबीर जी , प्रस्तुत  कुंडलिया छंद को सराहने हेतु हार्दिक  आभार आपका..आपके सुंदर सुझाव का बेहद स्वागत  है..मैंने रचना मे

के शिल्प में सुधार कर दिया है..पुन  : बेहद आभार आपका..सादर !

Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 3:14pm

मोहतरमा अनामिका सिंह "अना' जी आदाब, अच्छा छन्द हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'चीख गूँजतीं हैं यहाँ, करुणा भरी अनेक'

इस पंक्ति में"गूँजतीं', 'हैं' और "अनेक" शब्द बहुवचन हैं,और 'चीख' शब्द एक वचन,इसलिये इस पंक्ति को यूँ होना चाहिये:-

"चीख़ें गूंजीं हैं यहाँ, करुणा भरी अनेक'

Comment by Anamika singh Ana on March 16, 2018 at 3:02pm

 आदरणीय मो. आरिफ जी , सादर प्रणाम !

         आपकी सुझावयुक्त प्रोत्साहित प्रतिक्रिया हेतु अतिशय आभार ! 

किंतु मैंने ए और ऐ दोनों का मात्राभार गुरु ही पढ़ा है ..संत कबीरदास जी का एक दोहा साझा कर रही हूँ ...

   सुमिरन की सुधि यों करो जैसे कामी काम

   एक पलक बिसरै नहीं निश दिन आठों जाम

 शिल्प में और कोई कमी हो तो अवश्य बताएँ l कथ्य को अच्छा बनाने का मेरा प्रयास जारी है,  सादर l

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