विश्व कविता दिवस पर महाभारत युद्धकाल में भगवान के वचनों को अपने शब्दों में पिरोने की कोशिश
रे रे पार्थ ये क्या करते हो?
धनु धरा पर क्यों धरते हो?
ओ शूरवीर मत हो अधीर
नैनों में क्यों भरते हो नीर
जीवन तो आना जाना है
चिरकाल किसे रह जाना है
मन में यूँ न मोह धरो
गांडीव उठाओ कर्म करो
मृत्यु बंन्धन से मुक्ति है
किस बात की आसक्ति है
धर्म विमुख हो पाप न कर
रक्षा कर संताप न कर
हे धनंजय हे महारथी
मत भूलो 'मैं' तेरा सारथी
पृत्यंचा खींच ललकार करो
चढ़ नंदिघोष प्रहार करो
धर्म की जब विजय होगी
हे अर्जुन तेरी जय-जय होगी
कायरता को वरण करते हो
रे रे पार्थ ये क्या करते हो?
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आदरणीय आरिफ जी हार्दिक आभार
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब,
कविता दिवस पर पेश बहुत ही बेहतरीन कविता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
स्वागत है आदरणीय सुरेन्द्र जी..सादर अभिवादन स्वीकार करें..
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर जी..स्नेह बनाये रखें..सादर
आद0 बृजेश कुमार बज्र जी सादर अभिवादन। कविता दिवस पर अच्छी प्रस्तुति। बहुत बहुत बधाई आपको। सादर
जनाब बृजेश जी आदाब,कविता दिवस पर अच्छी प्रस्तुति,बधाई स्वीकार करें ।
नमन संग आभार स्वीकार करें आदरणीया कल्पना जी..
आदरणीय तस्दीक़ जी आपके शब्द ह्रदय में संजोने लायक हैं..इस ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया..
बहुत बहुत आभार आदरणीय धामी जी..
सुंदर सन्देश प्रद कविता हुई है | हार्दिक बधाई आदरणीय|
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