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हालात बदलते जाते हैं यह वक्त उसे उलझाता है ।
इंसान हक़ीक़त से अक्सर अब रब्त कहाँ रख पाता है ।।
जो ज़ख्म छुपा कर रखते हैं ईमान बचाकर चलते हैं ।
हिस्से में उन्हीं के ही अक्सर कुदरत का वजीफ़ा आता है ।।
कुछ राज बताने लगतीं हैं माथे की शिकन आंखों की चमक ।
चेहरे से पता चल जाता है जब खाब कोई मुरझाता है ।।
जब लूट गया कोई सपना तब होश में आकर क्या होगा ।
जालिम है अभी कितनी दुनिया यह वक्त हमें समझाता है ।।
उस रात तुम्हारी सांसो का अहसास अभी तक है जिंदा ।
चाहत का समंदर भी अब तक दरिया के लिए लहराता है।।
आबाद मुहब्बत क्या होगी हर मोड़ पे दुश्मन बैठे हैं ।
आशिक को सज़ाकर पलकों में नजरों से गिराया जाता है ।।
जो साथ निभाने वाले थे कुछ रूठ गए कुछ छूट गए ।
अब याद वो लम्हा क्या करना जो दर्द हमे दे जाता है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आद0 नवीन जी सादर अभिवादन।तरही मुशायरे की ग़ज़ल यहाँ पोस्ट करना ठीक नहीं। सादर
जी सर हटाता हूँ
नवीन जी,जो ग़ज़ल तरही मुशायरे में पोस्ट होती है,उसे ब्लॉग पर दोबारा पोस्ट करना नियम के ख़िलाफ़ है,इसे हटा लें ।
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