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चलती है रोज फ़िक्र यहां ज़िन्दगी के साथ ।।

221 2121 1221 212
जब से गये हैं आप किसी अजनबी के साथ ।
यूँ ही तमाम उम्र कटी बेखुदी के साथ ।।

कुछ वक्त आप भी तो गुजारो मेरे करीब ।
मत जाइए जनाब अभी बेरुखी के साथ ।।

कहने लगे है लोग उसे माहताब अब ।
मिलता नहीं जो मुझको यहाँ रोशनी के साथ ।।

है मुतमइन ही कौन यहां ख्वाहिशों के बीच ।
लाचारियाँ दिखीं है बहुत आदमी के साथ ।


तन्हाइयों का वक्त तो मिलना मुहाल है ।

चलती है रोज फ़िक्र यहां ज़िन्दगी के साथ ।।

गम से निज़ात कौन अभी पा सका हुजूर ।
रहते तमाम लोग यहाँ मयकशी के साथ ।


डूबा हुआ है शह्र अना के खुमार में ।
मिलते कहाँ हैं लोग यहां बन्दगी के साथ ।।

मफ़हूम है जुदा ये ग़ज़ल भी है कुछ जुदा ।
शायद कलम चली है कोई ताजगी के साथ ।।

खिलने का वक्त कौन दे भौरे हैं बद मिजाज ।
क्या हो रहा है आज चमन में कली के साथ ।।

यूँ तो शराब खूब बटी मैकदे में आज ।
होती नहीं नसीब मुझे तिश्नगी के साथ ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on March 28, 2018 at 8:45pm

आ0 मु0 आरिफ साहब सादर धन्यवाद सर । अवश्य प्रयास करूंगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 28, 2018 at 8:44pm

आ0 कबीर सर सादर नमन मिसरा में ऑडिट करके परिवर्तन अवश्य करता हूँ । 

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 28, 2018 at 8:43pm

आ0 बसन्त कुमार शर्मा जी सादर आभार 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 28, 2018 at 9:55am

बेहतरीन गजल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2018 at 8:57am

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on March 27, 2018 at 11:52am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

5वें शैर के सानी मिसरे में "फ़िक्र" शब्द स्त्रीलिंग है, मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by Mohammed Arif on March 27, 2018 at 8:11am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,

                            लाजवाब अश'आरों से सुसज्जित बेहतरीन ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी अमूल्य राय साझा करेंगे ।

                               कभी अन्य रचनाओं पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराएँ ।

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