For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलती है रोज फ़िक्र यहां ज़िन्दगी के साथ ।।

221 2121 1221 212
जब से गये हैं आप किसी अजनबी के साथ ।
यूँ ही तमाम उम्र कटी बेखुदी के साथ ।।

कुछ वक्त आप भी तो गुजारो मेरे करीब ।
मत जाइए जनाब अभी बेरुखी के साथ ।।

कहने लगे है लोग उसे माहताब अब ।
मिलता नहीं जो मुझको यहाँ रोशनी के साथ ।।

है मुतमइन ही कौन यहां ख्वाहिशों के बीच ।
लाचारियाँ दिखीं है बहुत आदमी के साथ ।


तन्हाइयों का वक्त तो मिलना मुहाल है ।

चलती है रोज फ़िक्र यहां ज़िन्दगी के साथ ।।

गम से निज़ात कौन अभी पा सका हुजूर ।
रहते तमाम लोग यहाँ मयकशी के साथ ।


डूबा हुआ है शह्र अना के खुमार में ।
मिलते कहाँ हैं लोग यहां बन्दगी के साथ ।।

मफ़हूम है जुदा ये ग़ज़ल भी है कुछ जुदा ।
शायद कलम चली है कोई ताजगी के साथ ।।

खिलने का वक्त कौन दे भौरे हैं बद मिजाज ।
क्या हो रहा है आज चमन में कली के साथ ।।

यूँ तो शराब खूब बटी मैकदे में आज ।
होती नहीं नसीब मुझे तिश्नगी के साथ ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 487

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 28, 2018 at 8:45pm

आ0 मु0 आरिफ साहब सादर धन्यवाद सर । अवश्य प्रयास करूंगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 28, 2018 at 8:44pm

आ0 कबीर सर सादर नमन मिसरा में ऑडिट करके परिवर्तन अवश्य करता हूँ । 

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 28, 2018 at 8:43pm

आ0 बसन्त कुमार शर्मा जी सादर आभार 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 28, 2018 at 9:55am

बेहतरीन गजल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2018 at 8:57am

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on March 27, 2018 at 11:52am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

5वें शैर के सानी मिसरे में "फ़िक्र" शब्द स्त्रीलिंग है, मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by Mohammed Arif on March 27, 2018 at 8:11am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,

                            लाजवाब अश'आरों से सुसज्जित बेहतरीन ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी अमूल्य राय साझा करेंगे ।

                               कभी अन्य रचनाओं पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराएँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service