अरकान: नामालूम
लय: दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त ... या ...आप को भूल जाएं हम इतने तो बेवाफ़ा नहीं ...की तरह
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जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे
दिल से तेरे निकल के हम जानें कहाँ कहाँ रहे.
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रब से दुआ है ये मेरी दिल की सदा है आख़िरी
लब पे उसी का नाम हो जिस्म में गर ये जाँ रहे.
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लगते हों आलिशान हम कहने को क़ामयाब हों
खो के तुझे तेरी कसम अस्ल में रायगाँ रहे.
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तेरी तलब में जाने जाँ ख़ाक हुए वगर्ना हम
तुझ से मिले थे उस से क़ब्ल कितनों के आसमाँ रहे.
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तन्हा तुम्हारे दर्द को रहने नहीं दिया कभी
दर्द जहाँ जहाँ रहा हम भी वहाँ वहाँ रहे.
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दैर-ओ-हरम के दौर में कौन दिलों को पूजता
घर थे सभी अँधेरे में रौशनी में मकाँ रहे.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ. अजय तिवारी जी
आप के अनुमोदन से ग़ज़ल सफल हुई ..
सादर
आदरणीय निलेश जी, उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
किसी शेर की तकती दो बहरों में हो सकती है. लेकिन बह किसी एक बहर के हिसाब से भी ठीक हो तो उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता .
इस ग़ज़ल की बहर 'रजज़ मुसम्मन मतवी मख़्बून' है. जैसा की आदरणीय दिनेश जी ने लिखा है इसके अरकान 'मुफ़तइलुन मफ़ाइलुन / मुफ़तइलुन मफ़ाइलुन' (2112 1212 // 2112 1212) हैं.
आधिकांश बहरों के नाम और उनके अरकान के विवरण की कभी ज़रूत हो तो ये लिस्ट देख सकते है :
http://www.openbooksonline.com/group/kaksha/forum/topics/5170231:To...
सादर
धन्यवाद आ. दिनेश कुमार जी,
ग़ज़ल आपका अनुमोदन पा कर पूर्ण हुई ..
मात्राएँ मैंने भी यही गिनी है लेकिन आजकल डर लगता है ..पता नहीं कोई इन्हें
211// 212 //122// 1121// 212 ऐसा बता दे तो?? :-D
वैसे ये मात्रा है ..अरकान नहीं...जैसे वो फैलुन वगैर: होते हैं... वो नहीं आते मुझे
सादर
बहुत उम्दा अशआर हुए हैं, आदरणीय निलेश सर, क्या कहने हैं !! वाह वाह वाह
आपने अरकान नामालूूूम kyu likha hai.. Sir
2112--1212----2112--1212
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