फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
22 22 22 22 22 22 22 2
सब में आग थी, लोहा भी था, नेक बहुत थे सारे हम
लेकिन तन्हा-तन्हा लड़ कर, तन्हा-तन्हा हारे हम
ज़र्रा-ज़र्रा बिखरे है हम, चारो ओर खलाओं में
लेकिन जिस दिन होंगे इकठ्ठा, बन जायेंगे सितारे हम
कितने दिन वो मूँग दलेंगे, कमजोरों की छाती पर
कितने दिन और चुप बैठेंगे, बनके यूं बेचारे हम
कबतक और ये खून की होली, कबतक और नफ़रत का खेल
कबतक और करेंगे दिल के, ये खूनी बंटवारे हम
जब हो जरूरत खिल जायेंगे, फिर से सुनहरी लपटों में
राख में अपनी दबे है लेकिन, हैं जलते अंगारे हम.
शायद एक दिन ऐसा होगा, खुशियाँ होंगी सब के साथ
शायद एक दिन ऐसा होगा, होंगे साथ तुम्हारे हम
"मौलिक/अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र जी, हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय वसंत जी, हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय आरिफ साहब, हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय समर साहब, हार्दिक धन्यवाद.
वाह वाह बहुत अच्छी ग़ज़ल आदरणीय अजय तिवारी जी ।सादर नमन जी।
वाह बहुत खूबसूरत गजल , बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय
आदरणीय अजय तिवारी जी आदाब,
मुश्क़िल बह्र में बहुत ही शानदार और सरस ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
जनाब अजय तिवारी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आदरणीय बृजेश जी, हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय निलेश जी, आपकी प्रसंशा से ग़ज़ल सार्थक हुई. हार्दिक धन्यवाद
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