२१२/ १२२२// २१२/ १२२२
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हाँ! सराब का धोखा तिश्नगी में होता है,
ग़लतियों पे पछतावा आख़िरी में होता है.
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तितलियों के पंखों पर चढ़ते हैं गुलों के रँग
ज़िक्र जब मुहब्बत का शाइरी में होता है.
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शम्स ख़ुद भी छुपता है देख कर अँधेरे को,
इम्तिहान जुगनू का तीरगी में होता है.
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बीज यादों के बो कर सींचता है अश्कों से
दिल ख़याल उगाता है जब नमी में होता है.
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जिस ख़ुदा की ख़ातिर तुम लड़ रहे हो सदियों से
काश ये समझ पाते वो सभी में होता है.
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कागज़ों से उठती है संदली सी इक ख़ुशबू
नाम जब लिखा उन का डायरी में होता है.
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मौत ही मुकम्मल है हश्र कुछ न जन्नत कुछ
ज़िन्दगी तमाशा है... ज़िन्दगी में होता है.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
दो पुछल्ले
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दुश्मनों के दिल जीते सत्य के जो आग्रह से
शख्स कब कोई ऐसा हर सदी में होता है.
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छोड़िये सुनाएँ क्या क़िस्से उस बहादुर के,
शेर बन के फिरता है जब गली में होता है.
Comment
आ. भाई नीलेश जी, बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय निलेश जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है. हर शेर खूबसूरत है. पुछल्ले भी बहुत खूब है. हार्दिक बधाई.
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