"लगता है कि अभी भी यह उड़ना नहीं सीख पायी।"
"अरे नहीं! दरअसल वह उड़ना भूल चुकी है बुरे तज़ुर्बों से !" - नई सदी की हैरान, परेशान नवयौवना को घर की छत पर अनिर्णय की स्थिति में देख उसके इर्द-गिर्द हवा में उड़ते एक गिद्ध ने अपने साथी कौवे से कहा। कौवा उस गिद्ध को घूरने सा लगा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
इंटरनेट या गूगल एतिबार के क़ाबिल नहीं होते भाई ।
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मिथिलेश वामनकर साहिब और जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।
बहुत-बहुत शुक्रिया अनुमोदन, हौसला अफ़ज़ाई और सही जानकारी के लिए मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब। बोलचाल और इंटरनेट पर प्रचलित शब्द 'तजुर्बे' ही सही समझ रहा था। गूगल सर्च में भी नुक्ता वाला मिल रहा था।
जनाब शैख़ शहज़ाद यस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा तंज़,इस लघुकथा के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें ।
'तज्रिबा' शब्द का बहुवचन 'तजुर्बे' या 'तजुर्बों' नहीं है बल्कि "तज्रिबात" है,और इसमें 'ज' के नीचे बिंदी नहीं लगती ।
आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब..
कमाल का कटाक्ष इस लघुतम लघु कथा में..
गिद्ध -कौवा ..सचमुच ..
बहुत बधाई
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बहुत ही कटाक्षपूर्ण लघुकथा , गहरी व्यंजना और संकेतात्मकता का संयोजन । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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