For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक गाँव में कुछ लोग ऐसे थे जो देख नहीं पाते थे, कुछ ऐसे थे जो सुन नहीं पाते थे, कुछ ऐसे थे जो बोल नहीं पाते थे और कुछ ऐसे भी थे जो चल नहीं पाते थे। उस गाँव में केवल एक ऐसा आदमी था जो देखने, सुनने, बोलने के अलावा दौड़ भी लेता था। एक दिन ग्रामवासियों ने अपना नेता चुनने का निर्णय लिया। ऐसा नेता जो उनकी समस्याओं को जिलाधिकारी तक सही ढंग से पहुँचा कर उनका समाधान करवा सके।

जब चुनाव हुआ तो अंधों ने अंधे को, बहरों ने बहरे को, गूँगों ने गूँगे को और लँगड़ों ने एक लँगड़े को वोट दिया। जो आदमी देख, सुन, बोल और दौड़ सकता था उसे केवल अपना ही वोट मिल सका। गाँव में अंधों की संख्या ज्यादा थी इसलिये एक ऐसा आदमी नेता बन गया जिसे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता था।

अंधा गाँव के इकलौते देख, सुन, बोल और दौड़ सकने वाले आदमी को लेकर जिलाधिकारी के पास गया और बोला, “हुजूर, माईबाप गाँव के सभी आदमियों एवं जानवरों के गले में घंटी बँधवा दीजिये और सभी वृक्षों और दीवारों में ऐसा सायरन लगवा दीजिये जो किसी के नजदीक आते ही बज उठे। इससे सारे ग्रामवासी बेधड़क सारे गाँव में घूम सकेंगे और अपना-अपना काम आराम से कर सकेंगे।”

जिलाधिकारी का दिमाग भन्ना गया। वह इकलौते देख, सुन, बोल और दौड़ सकने वाले आदमी से बोला, “यह क्या पागलपन है।”

आदमी बोला, “हुजूर यह लोकतंत्र है।”

--------------

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 836

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2018 at 2:35pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2018 at 2:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि प्रभाकर जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2018 at 2:34pm

जनाब Sheikh Shahzad Usmani साहब मैं स्वयं ओबीओ मंच पर लघुकथा का विद्यार्थी हूँ। अभी तक केवल आठ-दस लघुकथाएँ ही लिख पाया हूँ जो यहाँ ओबीओ पर ही मौज़ूद हैं। लघुकथा की सराहना के लिये तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2018 at 2:32pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय लड़ीवाला जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2018 at 2:32pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2018 at 2:31pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गोपाल नारायण जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2018 at 2:31pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 1:38pm

वाह आदरणीय क्या शानदार कटाक्ष किया है..वाकई में लोकतंत्र आजकल बड़ा दुखदाई प्रतीत हो रहा है...

Comment by Ravi Prabhakar on April 7, 2018 at 9:04pm

वाह! बहुत ही सधी और शानदार लघुकथा है भाई धर्मेन्‍द्र जी । आपकी कल्‍पना शक्‍ित की दाद देता हूं भाई जी । लघुकथा का शीर्षक ही सब कुछ बयां कर रहा है । बधाई स्‍वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 6, 2018 at 10:02pm
  • गांव/लोकतंत्र और जनता अंधे/गूंगे/बहरे /पूरी तरह से स्वस्थ दौड़ सकने वाले के प्रतीकों/बिम्बों में दिग्भ्रमित देशवासियों और दिग्भ्रमित प्रशासकों पर गहरे कटाक्ष करती मार्गदर्शक सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह जी। आपकी अन्य लघुकथाएं/संग्रह पढ़ कर अध्ययन करना और सीखने की कोशिश करना चाहता हूं। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service