स्वप्न मनभावन हृदय में,
रात-दिन पलता रहा.
गीत पग-पग साथ मेरे,
हर समय चलता रहा
पीर लिख कर कागजों में
रोज दिल अपना दुखाया.
प्रेम के दो शब्द लिखकर,
नीर आँखों से बहाया.
पर जमाने को निरंतर,
कृत्य यह खलता रहा.
धूप थी तीखी कभी फिर,
खुशनुमा मौसम हुआ.
साथ खुशियों के गमों का,
रोज ही संगम हुआ.
दर्द सारा प्रीत बनकर,
गीत में ढलता रहा.
निज जनों से चोट खाकर,
मन कभी घायल हुआ.
फिर किसी का साथ पाकर,
प्यार में पागल हुआ.
आस का दीपक हमेशा,
द्वार पर जलता रहा.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय Samar kabeer जी आपके स्नेह को सादर नमन, रचना सार्थक हुई.
आदरणीय Neelam Upadhyaya जी आपका तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपका तहे दिल से शुक्रिया
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्दा नवगीत रचा आपने,मज़ा आ गया,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय बसंत कुमार जी बढ़िया प्रस्तुति । बधाई ।
पीर लिख कर कागजों में
रोज दिल अपना दुखाया.
प्रेम के दो शब्द लिखकर,
नीर आँखों से बहाया.
पर जमाने को निरंतर,
कृत्य यह खलता रहा.
बहुत सुन्दर मनभावन गीत .. बधाई ..सादर |
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी ह्रदय से आभार आपका
हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी।बेहतरीन गीत।
निज जनों से चोट खाकर,
मन कभी घायल हुआ.
फिर किसी का साथ पाकर,
प्यार में पागल हुआ.
आस का दीपक हमेशा,
द्वार पर जलता रहा.
आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी आपका बेहद शुक्रिया, आपका सुझाव बहुत अच्छा लगा, यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें, सादर नमन आपको
आ. बसन्त जी,
फिर एक बहुत उम्दा गीत पटल पर प्रस्तुत किया आपने
बहुत बहुत बधाई ..
मुखड़े पग पग आने के बाद हर समय खटक रहा है
.
गीत पग-पग हाथ मेरा
थाम कर चलता रहा
.
आस का दीपक सदा ही, यहाँ ही भर्ती का है ..
सदा ही को हमेशा किया जा सकता है तो देखिएगा
.
प्रस्तुति पर बधाई
सादर
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