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जिस दिन वो मुझसे प्यार का इजहार कर दिया ।
इस जिंदगी को और भी दुस्वार कर दिया ।।
चिंगारियों से खेलने पे कुछ सबक मिला ।
घर को जला के मैंने भी अंगार कर दिया ।।
उठने लगीं हैं उंगलियां उस पर हजार बार ।
मुझको वो जब से हुस्न का हकदार कर दिया ।।
शायद पड़ी दरार है रिश्तों की नींव में ।
किसने दिलों के बीच मे दीवार कर दिया ।।
मांगा था मैंने एक तबस्सुम भरी नज़र ।
शर्मा के उसने बात से इनकार कर दिया ।।
जीने का हक़ था चैन से जीता मैं शान से ।
बस दिल चुरा के आपने लाचार कर दिया ।।
यूँ ही तड़प के रह गया मछली की तर्ह मैं ।
जबसे निगाह से वो कई वार कर दिया ।।
देखा किया मैं उम्र तलक ख्वाब बेहिसाब।
इन चाहतों के दौर ने बीमार कर दिया ।।
शायद उतर गया है कोई चाँद बज़्म में ।
मुद्दत की ख्वाहिशों को वो गुलज़ार कर दिया ।।
छलके जो दर्द मेरी जुबाँ से कभी कभार ।
गम को मेरे तो आपने अखबार कर दिया ।।
नीलामियों के दौर से गुजरी है आशिकी ।
तुमने गरीब खाने को बाजार कर दिया ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब ।
बेहतरीन ग़ज़ल ।
सुंदर अहसास । दिली दाद ।
सादर ।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई। कृपया शर्मा को शरमा कर ले। सादर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! |
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