हो जाए कोई स्वजन, अगर अचानक दूर।
तब निश्चित यह मानिए, है कुछ बात जरूर।।
है कुछ बात जरूर, वरन ऐसा क्यों होता।
जो बनता अनजान, वही अपनों को खोता।।
सिर्फ जरा सी बात, चोट दिल को पहुँचाए।
मीठे हों यदि बोल, गैर अपना हो जाए।।
2-
जिसके भी मन में हुआ, लेशमात्र भी दंभ।
उसका निश्चित मानिए, पतन हुआ प्रारंभ।
पतन हुआ प्रारंभ, यही इतिहास बताता।
लेकिन मद में चूर, व्यक्ति यह समझ न पाता।
रावण कौरव कंस, प्रमाण रहे हैं इसके।
उसका हुआ विनाश, अहं था मन में जिसके।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय Sushil Sarna जी, आदरणीय Vijay Niklte जी,आदरणीय Samar Kabeer जी,आदरणीय डॉ.छोटेलाल सिंह जी,आदरणीया Neelam Upadhyay जी, आदरणीय ब्रजेश कुमार 'ब्रज' जी, एवं आदरणीया Dr. Rama Dwivedi जी।
वाह ! बहुत ही उत्कृष्ट कुंडलियां ,बधाई आदरणीय |
वाह उत्तम छंद रचना आदरणीय..
आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी, नमस्कार । बहुत ही कुंडलियों की प्रस्तुति पर बधाई।
आदरणीय हरिओम जी बेहतरीन कुण्डलिया लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत उम्दा कुण्डलिया छन्द रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत ही मनमोहक। हार्दिक बधाई।
वाह आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी बहुत ही सुंदर,अर्थपूर्ण और संदेशप्रद कुंडलियों का सृजन हुआ है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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