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गजल(हारकर बैठे जुआरी....)


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हारकर बैठे जुआरी,हो  नहीं सकता
बंदरों के सर हो टोपी,हो नहीं सकता।1

आसरों का सिलसिला चलता रहा कब से
जो सियासत में,करीबी?हो नहीं सकता।2

रास्ते जितना चले शायद मुनासिब हो
रुक गये तो तय हो बाकी,हो नहीं सकता।3

झूठ पर कुरबान सब हैं किस कदर देखो
सच कहो, हो वाहवाही,हो नहीं सकता।4

हम नहीं तो हम नहीं सब लोग कहते हैं
शह बिना मच ले तबाही,हो नहीं सकता।5

जख्म देते शख्स जो बेशक जमाने को
माँग लें खुद ही मुआफी,हो नहीं सकता।6

जम गई है बर्फ कितनी ही घरौंदों में
गर न पिघलेगी तो' पानी हो हीं सकता।7

दान फिर प्रतिदान की कायल फिजाएँ हैं
प्रेम का उपहार बासी हो नहीं सकता।8

आँसुओं का मोल आँखों ने चुकाया है
बात दिल की हो जुबानी,हो नहीं सकता।9

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on April 18, 2018 at 9:03pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय बृज जी।'न' छूट गया है,आपने इंगित किया,इसके लिए अलग से धन्यवाद।

Comment by Manan Kumar singh on April 18, 2018 at 9:01pm

आभारी हूँ आदरणीय राम अवध जी।

Comment by Manan Kumar singh on April 18, 2018 at 9:01pm

आपका आभार आदरणीय छोटेलाल जी।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on April 17, 2018 at 9:03pm

इदरणीय मनन कुमार जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये हार्दिक बधाई।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on April 17, 2018 at 8:20pm

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी बहुत बेहतरीन गजल कही आपने इसके लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by Manan Kumar singh on April 17, 2018 at 5:45pm

जनाब समर जी,आदाब और शुक्रिया।आपकी सलाह काबिले गौर है।जरूर ध्यान में रहेगी।

Comment by Samar kabeer on April 17, 2018 at 3:17pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया पटल पर आई रचनाओं पर अपनी बहुमूल्य राय दिया करें,ये आपका फ़र्ज़ भी है ।

Comment by Manan Kumar singh on April 17, 2018 at 11:21am

शुक्रिया

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 17, 2018 at 9:45am

बहुत खूब 

कृपया ध्यान दे...

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