22 22 22 22
अपना घाव छुपा के रखना
मन को भी समझा के रखना।1
ऊपर ऊपर जैसा भी हो
अंदर आग जला के रखना।2
और उजाला करना होगा
थोड़ा तेल बचा के रखना।3
तीर चलेंगे जाने कितने
देखो ढ़ाल बढ़ा के रखना।4
कौन सुनेगा बातें ढ़ब की
बाण-धनुष चमका के रखना।5
मंजिल कोई दूर नहीं है
ख्वाहिश को उमगा के रखना।6
रात अँधेरी,चंदा संगी,
रुनझुन बीन बजा के रखना।7
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
शुक्रिया जनाब आरिफ जी।
शुक्रिया आदरणीया नीलम जी।
आभारी हूँ जनाब समर जी,आदाब।
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।
ऊपर ऊपर जैसा भी हो
अंदर आग जला के रखना।2
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,
कठिन बह्र में बेहतरी ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का संज्ञान लें ।
आदरणीय मनन कुमार जी । खूबसूरत रचना की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
तीसरे शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ देखें ।
'कौन सुनता बातें ढब की'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर सकते हैं:-
'कौन सुनेगा बातें ढब की'
बहुत बहुत शुक्रिया,नमन।
आदरणीय मनन जी आदाब ।
अति सुंदर पेशकश । बधाई ।
सादर !
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