2122 2122 212
ओस की बूंदें भी' प्यासी हैं अभी
परकटी चाहें अधूरी हैं अभी।1
नश्तरों का हाल अब मत पूछना
बुत बनी रातें यूँ तारी हैं अभी।2
क्या करोगे जानकर सब सिलसिला?
सच मरा है, बातें' टेढ़ी हैं अभी।3
औरतों के नाम लेके आजकल
नख चले,घातें यूँ' माती हैं अभी।4
लाइलाजों का करो कुछ तो जतन
इल्म वाली बाँहें' बाकी हैं अभी।5
नर्म बिस्तर के सिवा झपकी नहीं?
नाखुदाओ! लपटें' खासी हैं अभी।6
"मौलिक व अप्र का शि त"
Comment
आ मनन साहब जी प्रणाम
गजल का हर शे "र लाजवाब है दिली बधाई नमन
आपका आभार आदरणीय ब्रिज जी।
शुक्रिया आदरणीय समर जी।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर जी।
आपका आभार आदरणीय आरिफ जी।
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय...
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।
क्या करोगे जानकर सब सिलसिला?
सच मरा है, बातें' टेढ़ी हैं अभी।3
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,
एक अच्छी ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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