For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- शीशा-ए-दिल से गर्द हटाने की बात कर // दिनेश कुमार

221---2121---1221---212
.
तू मुश्किलों को धूल चटाने की बात कर
तूफ़ाँ में भी चराग़ जलाने की बात कर
.
तू मीरे-कारवाँ है तो ये फ़र्ज़ है तिरा
भटके हुओं को राह दिखाने की बात कर

महफ़िल में जब बुलाया है मुझ जैसे रिन्द को
आँखों से सिर्फ़ पीने पिलाने की बात कर
.
ऐशो-तरब की चाह भी कर लेना बाद में
पहले उदर की आग बुझाने की बात कर
.
मुद्दत से मुन्तज़िर हूँ तिरा ऐ सुकूने-दिल
ख़्वाबों में ही सही कभी आने की बात कर
.
बस पैरहन ही जिस्म का बदले न ये क़ज़ा
परमात्मा से ख़ुद को मिलाने की बात कर
.
धुंधले दिखें न कर्म तिरे ख़ुद को ऐ 'दिनेश'
शीशा-ए-दिल से गर्द हटाने की बात कर
.
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 760

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on April 30, 2018 at 8:52am

बेहतरीन पेशकश आदरणीय जनाब दिनेश कुमार जी ।

सादर ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 8:27am

भाई, इता दोष से बचने का सबसे आसान तरीका है कि यदि काफ़िये पिलाने, दिखाने आदि हों तो मतले में एक बढ़ा हुआ रखिए और एक मूल ..फिर उस में ने जोड़ दें ..
जैसे पिला के साथ आ  तो बनेगा पिलाने और आ ने ... या सुला ..आज़मा,, तो सुलाने ..  आज़माने 
सादर 

Comment by दिनेश कुमार on April 30, 2018 at 4:20am

हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर सर जी। बहुत इनायत सर।

नाराज़गी की कोई बात कैसे हो सकती है सर,  मतलब ही नहीं। सारा क़ुसूर यहाँ के comment box का है। कभी तो मेरे जवाब show कर देता है, और कई बार 5-6 बार type कर टक्कर मार कर थक जाता हूँ, लेकिन comment नहीं छपता। लेकिन  जो आपने बताया था, वो नोट करता और ठीक ज़रूर करता हूँ। सादर। 

Comment by Samar kabeer on April 29, 2018 at 9:44pm

जनाब दिनेश जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें,बाक़ी निलेश जी कह चुके हैं ।

आपकी पिछली ग़ज़ल पर भी मैंने कुछ लिखा था,लेकिन आपने जवाब देने की ज़हमत गवारा नहीं की,क्या नाराज़गी है भाई?

Comment by दिनेश कुमार on April 29, 2018 at 7:59pm

हौसला अफ़ज़ाई के लिए आभार आ. बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 29, 2018 at 7:53pm

आदरणीय दिनेश जी क्या ही खूब ग़ज़ल कही है..सादर

Comment by दिनेश कुमार on April 29, 2018 at 6:47pm

हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर जी।

तूफ़ान में.... सही सुझाव है, सर। वाक़ई 'भी' शब्द की ज़रूरत नहीं थी।
ईता दोष मुझे थोड़ा कम समझ आता है, सर। पहले मैंने कुछ और ऊला में रखा था --- अज़्म दिखाने की बात कर। लेकिन ईता का ध्यान आने पर मिसरा बदल कर ' धूल चटाने की बात कर' किया। सोचा था कि धूल चटाना मुहावरा होने की वजह से शायद ईता दोष न माना जाये।

आँखों से जाम .... शानदार इस्लाह सर। मिसरे में जान ही अब आई है। पहले मैं भी ख़ुद संतुष्ट नहीं था।

धुँधले में आपके कथन से मैं सहमत हूँ सर। typing mistake समझ लीजिये, ☺

और ये आपकी मुहब्बत है जो आप ग़ज़ल को अच्छी बता रहे हैं। वैसे मेरा संग्रह प्रकाशित हुए 8-10 दिन हो चुके हैं, सर। लेकिन किसी दोस्त के पास ही सभी प्रकाशित प्रतियाँ पड़ीं हैं। ले कर आने का आलस्य है। (हाँ, print से पहले का प्रूफ करने के बाद का मैटर pdf file के रूप में है, मेरे पास। )

आपने सही कहा, सर कि ओबीओ मंच पर बारीकियां सीखने को मिल जाती हैं। सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2018 at 9:06am

आ. दिनेश जी ,
कभी कभी बहुत आसान बातें हम सभी रचनाकार छोड़ कर अपनी ही सोच में उलझ जाते हैं.. इसलिए OBO जैसा मंच बहुत ज़रूरी है ताकि रचना की सरलतम समीक्षा हो सके ..
आपका मतला देखिये 
.
तू मुश्किलों को धूल चटाने की बात कर
तूफ़ाँ में भी चराग़ जलाने की बात कर..... यहाँ सानी के भी की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी अगर आप तूफां को तूफ़ान कर लेंगे ..
तूफ़ान में  चराग़ जलाने की बात कर.. 
 

इसके अलावा चटाने और जलाने में इता दोष की हल्की सी झलक है ..
.
आँखों से जाम  पीने पिलाने की बात कर
.
धुंधले को धुँधले कर लें... अभी हाल ही में किसी रचना पर सौरभ सर की टिप्पणी से अनुस्वार और चन्द्र बिंदु का फर्क यूँ समझ में आया कि अनुस्वार दो मात्रिक रहेगा ..
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने  और जैसे जैसे आप   की पुस्तक प्रकाशन के क़रीब पहुँच रही है..आप की रचनाएं भी श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम होती जा रहीं हैं..
ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service