करनी है जब मन की साहब
क्यों पूछे हो हमरी साहब ।
पानी भरने मैं निकला हूँ
ले हाथों में चलनी साहब ।
पढ़े फ़ारसी तले पकौड़े
किस्मत अपनी अपनी साहब ।*
आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है उनकी साहब ।*
शौचालय का मतलब तब ही
जन जब खाए रोटी साहब ।
नही सुरक्षित घर में बेटी
धरम-करम बेमानी साहब ।
सच्ची सच्ची बात जो बोले
आज वही है 'बाग़ी' साहब ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
*संशोधित
Comment
आदरणीय समर साहब, ग़ज़ल पर समय और महत्वपूर्ण सुझाव हेतु दिल से आभार ।
-अरकान लिखने की अनिवार्य शर्त के बारे में मैं विस्मृत हो रहा हूँ कृपया प्रसंग देने की कृपा हो ।
-हमारी नही हमरी टंकित है जिसके वज़ह से उल्लेखित मिसरा लय में है ।
-चलनी शब्द सही है आदरणीय, छलनी पर्यायवाची है ।
-मुझे भी साहब रदीफ़ के चलते शुतुर्गुरबा दोष की आशंका थी। सुधारने का प्रयास करता हूँ ।
-आटा वाले शेर को आप के सुझाव अनुसार एडिट करूँगा आदरणीय ।
इस मुहब्बत हेतु दिल से आभार आदरणीय।
जनाब गणेश जी 'बाग़ी' साहिब आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आपने मंच के नियमानुसार अरकान भी नहीं लिखे?
क्यों पूछे हो हमारी साहब'
ये मिसरा लय में नहीं है,देखियेगा ।
दूसरे शैर में 'चलनी' शब्द पर मुझे शंका है कि सहीह शब्द "छलनी"तो नहीं?समाधान करें ।
'पढ़ लिख कर तू बेच पकौड़े
छोड़ कलम धर छननी साहब'
इस शैर में शुतरगुर्बा दोष है,देखियेगा ।
'आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है तेरी साहब'
इस शैर के सानी मिसरे में शुतरगुर्बा दोष है,सानी यूँ कर सकते हैं:-
'सब माया है उनकी साहब'
वाह आदरणीय बागी साहब ।
छोटी बहर में आजकल के माहौल को अपने अहसासों के साथ खूब सजाया है साहब । मेरी ज़ानिब से इस बेहतरीन पेशकश पर ढ़ेरों दाद सर ।
वसूल पाइयेगा ।
सादर ।
आपने सर ।
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