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करनी है जब मन की साहब
क्यों पूछे हो हमरी साहब ।

पानी भरने मैं निकला हूँ
ले हाथों में चलनी साहब ।

पढ़े फ़ारसी तले पकौड़े
किस्मत अपनी अपनी साहब ।*

आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है उनकी साहब ।*

शौचालय का मतलब तब ही
जन जब खाए रोटी साहब ।

नही सुरक्षित घर में बेटी
धरम-करम बेमानी साहब ।

सच्ची सच्ची बात जो बोले
आज वही है 'बाग़ी' साहब ।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

*संशोधित

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 29, 2018 at 7:07pm

आदरणीय समर साहब, ग़ज़ल पर समय और महत्वपूर्ण सुझाव हेतु दिल से आभार ।

-अरकान लिखने की अनिवार्य शर्त के बारे में मैं विस्मृत हो रहा हूँ कृपया प्रसंग देने की कृपा हो ।

-हमारी नही हमरी टंकित है जिसके वज़ह से उल्लेखित मिसरा लय में है ।

-चलनी शब्द सही है आदरणीय, छलनी पर्यायवाची है ।

-मुझे भी साहब रदीफ़ के चलते शुतुर्गुरबा दोष की आशंका थी। सुधारने का प्रयास करता हूँ ।

-आटा वाले शेर को आप के सुझाव अनुसार एडिट करूँगा आदरणीय ।

इस मुहब्बत हेतु दिल से आभार आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on April 29, 2018 at 6:27pm

जनाब गणेश जी 'बाग़ी' साहिब आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपने मंच के नियमानुसार अरकान भी नहीं लिखे? 

क्यों पूछे हो हमारी साहब'

ये मिसरा लय में नहीं है,देखियेगा ।

दूसरे शैर में 'चलनी' शब्द पर मुझे शंका है कि सहीह शब्द "छलनी"तो नहीं?समाधान करें ।

'पढ़ लिख कर तू बेच पकौड़े

छोड़ कलम धर छननी साहब'

इस शैर में शुतरगुर्बा दोष है,देखियेगा ।

'आटा से डाटा है सस्ता

सब माया है तेरी साहब'

इस शैर के सानी मिसरे में शुतरगुर्बा दोष है,सानी यूँ कर सकते हैं:-

'सब माया है उनकी साहब'

Comment by Harash Mahajan on April 29, 2018 at 3:18pm

वाह आदरणीय बागी साहब ।

छोटी बहर में आजकल के माहौल को अपने अहसासों के साथ खूब सजाया है साहब । मेरी ज़ानिब से इस बेहतरीन पेशकश पर ढ़ेरों दाद सर ।

वसूल पाइयेगा ।

सादर ।

आपने सर ।

कृपया ध्यान दे...

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