For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पाँच बरस तक कुछ न कहेंगे कर लो अपने मन की बाबू ।
बात चलेगी, तो बोलेंगे, अपनी ही थी गलती बाबू ।।

चाँद-चाँदनी, सागर-पर्वत, चाहत कहाँ किसानों की है ?
मुमकिन हो तो इनके हिस्से लिख दो थोड़ी बदली बाबू ।।

खाली थाली, खाली तसला, टूटा छप्पर, चूल्हा गीला,
रोजी-रोटी बन्द पड़ी जब, क्या करना जन-धन की बाबू ।।

जो काशी बन जाए क्योटो, या दिल्ली हो जाए लंदन ।
प्यासा जन बस जल पा जाये, गाँव लगे शंघाई बाबू ।।

अच्छे-दिन, काले-धन की बातें, जुमलें हैं जुमलों की क्या ?
"बाग़ी" भी अब समझ रहा है लेते हो तुम फिरकी बाबू ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1176

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on May 28, 2018 at 11:09am

उम्दा ग़ज़ल है आदरणीय गणेश जी "बागी" जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 26, 2018 at 9:37pm

आदर्णीय समर कबीर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया तनाफुर पर विस्तृत जानकारी देने के लिये।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 26, 2018 at 12:33pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी। लाज़वाब गज़ल।

Comment by Samar kabeer on May 26, 2018 at 11:30am

जनाब राम अवध जी आदाब,ऐब-ए-तनाफ़ुर उसे कहते हैं कि जिस अक्षर पर जुमला ख़त्म हो रहा है,उसी अक्षर से अगला जुमला शुरू हो,जैसे 'हम मर गये' इसमें 'हम' का आख़री अक्षर 'म' है, और 'मर' का पहला अक्षर भी 'म' है, तनाफ़ुर दो तरह का होता है,एक ये कि जिसे शब्दों के उलट फेर से बदला जा सके,दूसरा ये कि उसे बदलने से शैर का हुस्न ख़त्म हो रहा हो,जैसे 'जिगर' का मतला है:-

'जो अब भी न तकलीफ़ फरमाइयेगा

तो फिर हाथ मलते ही रह जाइयेगा'

इस मतले के ऊला मिसरे में 'तकलीफ़' का आख़री अक्षर 'फ़' और 'फरमाइयेगा' का पहला अक्षर 'फ़' है, यानी ऐब-ए-तनाफ़ुर,लेकिन यहाँ इस ऐब को निकालने से मतले का हुस्न ख़त्म हो जायेगा,अब जनाब बाग़ी जी के मिसरे में इसे बदलने से शैर का हुस्न बढ़ रहा है, उम्मीद है आप समझ गए होंगे,इसके बारे में विस्तृत जानकारी के लिए "ग़ज़ल की बातें" में आलेख मौजूद है,उसका अध्यन करें ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 26, 2018 at 6:02am

आदर्णीय समर कबीर साहब ऐबे तनाफुर पर मेरा मार्गदर्शन करने की कृपा करें। इसी मंच पर एक महान शायर का तरही मिसरा दिया गया था।

दुनिया ये बदलने वाली है किस चीज पे तू इतराता है।

आदर्णीय क्या इस मिसरे में तनाफुर का ऐब नहीं है यदि है तो क्या ये जायज है? 

Comment by Samar kabeer on May 25, 2018 at 4:25pm

जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।

'बात चलेगी, तब बोलेंगे,अपनी ही थी ग़लती बाबू'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें 'तब बोलेंगे',मिसरा यूँ कर लें तो ऐब निकल जायेगा:-

'बात चली तो,हम बोलेंगे,अपनी ही थी ग़लती बाबू'

मक़्ते के ऊला मिसरे के अंत में 'जुमलों की क्या' की जगह "जुमलों का क्या" करना उचित होगा ।

Comment by राज लाली बटाला on May 24, 2018 at 6:18am

आज की सियासत पर जबरदस्त प्रहार किया है आद गणेश जी बहुत खूब

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 24, 2018 at 1:40am

देश के पीड़ित वर्गों और नकारात्मक राजनीति पर रौशनी डालती बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार आदरणीय इंजी. गणेश जी 'बागी' साहिब। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2018 at 10:59pm

आ. बागी जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई । 

Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2018 at 10:58am
वाह बेहद खूबसूरत प्रस्तुति … हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
20 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service