करनी है जब मन की साहब
क्यों पूछे हो हमरी साहब ।
पानी भरने मैं निकला हूँ
ले हाथों में चलनी साहब ।
पढ़े फ़ारसी तले पकौड़े
किस्मत अपनी अपनी साहब ।*
आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है उनकी साहब ।*
शौचालय का मतलब तब ही
जन जब खाए रोटी साहब ।
नही सुरक्षित घर में बेटी
धरम-करम बेमानी साहब ।
सच्ची सच्ची बात जो बोले
आज वही है 'बाग़ी' साहब ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
*संशोधित
Comment
मक़्ता कमाल। तखल्लुस ने अपने वास्तविक अर्थ में आकर कईं गुणा प्रभाव दे दिया।
वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह कमाल के तंज और एक बेहतरीन ग़ज़ल साहब
पिछले दिनों ज्यादा मसरूफ़ियत की वजह से पोस्ट पर आना नहीं हो सका माफ़ कीजिये
पूरी चर्चा पढ़ी तो सब समझ आया अरकान वाली बात मैंने भी दोहरा दी .
खैर इस ग़ज़ल के सभी शेर खंजर की तरह हैं
ढेरो दाद हाजिर हैं आद० गणेश जी विशेष कर मक्ते पर सबसे अधिक
सराहना हेतु आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई ।
जनाब मोहम्मद आरिफ साहब, सराहना हेतु दिल से आभार ।
ग़ज़ल पर आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु हृदय तल से आभार आदरणीय नीलेश भाई ।
सराहना हेतु दिल से आभार मोहतरम शेख़ सहजाद उस्मानी साहब ।
सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय हर्ष महाजन साहब ।
आ. भाई गणेष जी, बेहतरीन समसामयिक गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय गणेश 'बाग़ी' जी आदाब,
सामयिकता का पुट लिए बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
जी,बिल्कुल ।
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