जाति-पाती पूछे हर कोई
“हो गईल चन्दवा क शादी |” पत्नी मोबाईल कान से लगाए मेरी तरफ देखते हुए बोली
मैं दफ्तर से लौटा तो समझ गया की पत्नी जी अपनी माता से फ़ोन पर लगी पड़ी हैं |मैंने बिना कोई रूचि दिखाए अपना बैग रखा और हाथ-मुँह धोने चला गया |
थोड़ी देर बाद पत्नी चाय लेकर आई और सामने बैठ गयी |मैं समझ गया कि वो मुझे कुछ बताने के लिए बेताब है और यह भी कि यह चंदा के विषय में है पर सिद्ध-पुरुष की तरह मैं प्लेट से कचरी उठाकर खाने लगा और अपने व्हाट्सएप्प को चैक करने लगा |
“जानते हो चंदा की शादी हो गई |” पत्नी ने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा
“हूँ s |” मैंने बिना उसकी तरफ देखते हुए कहा
“अच्छा है,कलह कटी,बेचारे दुबेजी उस रोज़ से किसी से आँख नहीं मिला पा रहे थे |” पत्नी ने आगे बात बढ़ाते हुए कहा |
“दो दिन में लड़का भी मिल गया ?” मैंने पत्नी की तरफ़ देखते हुए कहा
“हाँ,कोई दोहाजू है,उसकी पन्द्रह साल की एक लड़की है,खेती-बारी ठीक-ठाक है और क्या चाहिए !”
“पर चंदा तो केवल बाईस साल की है और यह आदमी कम से कम चालीस का होगा----यह तो बहुत बड़ी सजा है !” मैंने तर्क करते हुए कहा
“वो जो कांड करी है उसके आगे तो यह सजा कुछ भी नहीं गई होती उस अहीर के घर और जब गाय-भैंस का साना –पानी करना पड़ता और गोबर फैंकना होता तो अक्ल खुलती उसकी |”
“क्यों गाय-भैंस खिलाना और गोबर फैंकना बुरा काम है |”
“बुरा तो नहीं है पर जिसे हथेलियों पर रखा गया हो उसे जब ये सब करना पड़ता है तो आँख खुलती है ---एक थी ना हमारे यहाँ मिश्राजी की बेटी वो भी पड़ोसी-गाँव के पासी के साथ भाग गई थी अब जाती है दूसरे के खेतों पर घास करने -----|”
“ठीक है उसने गलती की |पर उसके माँ-बाप को तो समझना चाहिए था |क्या ऐसे कहीं भी लड़की ब्याह देने से उनकी इज्जत लौट आएगी |”
“उसे भी तो यह बात समझनी चाहिए थी अगर उसे कोई और पसंद था तो घर वालों को बताना चाहिए था |
शादी के ठीक दिन भाग कर उसने गाँव और अपने माँ-बाप की जो थू-थू कराई है |वो तो शुक्र है की उसकी बुआ की लड़की शादी के लिए मान गयी वरना-----”
“तुम ही तो बता रही थी कि चंदा जिस के साथ भागी वो लड़का अहीर था और उसके पिताजी की जीप चलता था |हो सकता है उसने बताया हो पर घरवाले ना माने हों ---“ मैंने अपना तर्क रखते हुए कहा
“छह महीने से तो कोई और जीप चला रहा है---शायद ये चक्कर पुराना हो----पर जो भी हो उसे प्यार करने के लिए अहीर ही मिला था ---वो भी दो बच्चों का बाप |उसके चाचा तो बहुत खफ़ा थे साफ़ बोल दिए थे की इसे वापिस लाए तो वो घर से मतलब खत्म कर लेंगे वो तो पुलिस के दबाब में इसे वापिस लाना पड़ा | ”
“पहले तो तुम लोग कह रहे थे की अहीर नहीं कोई और है |वो तो घर पर ही था न !” मैंने उत्सुकता जताई
“बड़ा शातिर था अहिरा !सुबह गाँव में रहता था और शाम को बनारस चंदा के पास चला जाता था |पुलिस ने दोनों के नम्बर सर्विलांस पर लगाए थे उसी से पकड़ में आया |”
“तुम तो कह रही थी की पुलिस वाले दोनों की शादी करवाने वाले थे |मैं कहता था न की शादी तो करवा ही नहीं सकते,गैरक़ानूनी होती |”
“मुझे क्या मालूम वो तो अम्मा कह रहीं थीं |”
“अच्छा किया की घरवालों ने उसे वापिस रख लिया वरना ऐसी लड़कियों की बहुत फ़जीहत होती है पर फिर भी जल्दबाजी में शादी इसे मैं गलत मानता हूँ |”
“जिस लड़की के हल्दी चढ़ी हो और सारे नाते-रिश्तेदार इकट्ठे हों वो घर से भाग जाए वो सही है |वैसे वो लड़की बहुत सीधी है |गाँव में किसी से आँख ऊँची करके भी बात नहीं करती थी |पता नहीं वो अहिरा कौन सी भांग पिलाया या कोई जादू-टोना किया की बेचारी उसके झाँसे में आ गई |”
“ये दिल का मामला ऐसा ही होता है और इसके लिए किसी जाति विशेष पर लांछन मेरे विचार में गलत है |”
“ |तुम नहीं समझोंगे |पहले ये अहीर-गौड़ बड़े आदमियों के सामने बैठते तक नहीं थे पर कुछ लड़कियों की नासमझी के कारण आज वे मुँह पर गाली देकर चले जाते हैं |”
“क्या तुम्हारे गाँव में किस बडजात ने किसी निचली औरत के साथ कभी गलत काम नहीं किया ?”
“गलत काम वालों का मुझें पता नहीं हैं | ? पर जो लोग नीच लड़कियों से शादी करें हैं ऐसे लोगों से गाँव-समाज उठना-बैठना बंद कर लेता है |
“पर इस जाति-पात में क्या रखा है ?मेरे विचार से तो यह केवल एक राजनैतिक एवं समाजिक हथकंडा है जिसका मुख्य उद्देश्य संसाधनों पर नियंत्रण करना मात्र है |ऐसा क्यों हैं की तथाकथित निचली जातियाँ प्राय गरीब हैं |”
“वो सब मुझे नहीं पता |मैं इतना जानती हूँ की समाज में हर चीज़ का अपना महत्त्व है |जाति का भी अपना महत्त्व है |अगर सब लोग बराबर हो जाएँगे तो समाजिक-संतुलन खत्म हो जाएगा |-----अभी देख लो ,गाँव के जितने नीच जाति के लड़के हैं वो अब हम लोगों का कोई काम करने को तैयार नहीं हैं ---पिताजी के जमाने में इन लोगों के बाप एक आवाज़ पर दौड़े आते थे और घंटो घुटनों पर बैठे रहते थे |आज तो रुपया-पैसा देने पर भी कोई जल्दी नहीं मिलता |”
“ऐसा इसलिए की तुम्हारे पिताजी तब एक रहीस होते थे और आज तुम्हारे गाँव के पासी-चमार भी इतने पैसे वाले हैं की उनके घर तुम्हारे घर से ज्यादा बड़े हैं और उनके पास बड़ी गाड़ियाँ हैं |”
“पैसा आने से जाति थोड़े बदल जाती है |यह जाति-पात,ऊँच-नीच तो भगवान के घर से तय होता है |जिसे राजपूत होना होता है वो राजपूत के घर पैदा होता है और जिसे अहीर वो अहीर के घर |”
पत्नी की बात से मैं चिढ़ने लगा था इसलिए मैंने कुछ नाराजगी से कहा
“मेरे विचार में तुम्हारा पढ़ना-लिखना व्यर्थ है |और तुम्हारी जैसी सोच के कारण ही समाज में जाति और ऊँच-नीच बने रहेंगे |”
“अपनी यह मास्टरी अपने तक रखों ---इतने ही क्रन्तिकारी थे तो क्यों नहीं कर ली उस तेलिन से शादी |” पत्नी ने तंज़ मारते हुए कहा |
पत्नी ने मेरे जख्मों पर नमक डालना शुरू कर दिया |अब मुझे महसूस हुआ की बहस और बढ़ाने से मेरी भावनाओं का ही छीछालेदर होगा |मैं जाति-पात की इस बहस से बचना चाहता हूँ |मैंने जब उस लड़की से मोहब्बत की थी तो उसकी आँखों और मीठी बातों पर मोहित हुआ था |हमनें एक-दूसरे को केवल नाम वो भी प्यार के नाम से बुलाया था |उपनाम अथवा जातिगत संज्ञाए उस समय समझ आई जब वह जीवनसाथी बनने की राह में सबसे बड़ी दीवार के रूप में दिखाई दी |और वह ऐसी दीवार साबित हुई जिसे हम दोनों में से किसी ने नहीं लाँघा |मैं अंधे प्रेम की हिमायत नहीं करता पर जाति-धर्म के कारण अपने अधूरेपन पे बिलखते साथियों को देखकर निराश हो जाता हूँ |
कई साथी कहते हैं की नगरीकरण एवं शिक्षा से जाति प्रथा दुर्बल हुई है पर मुझे लगता है की केवल प्रारूप बदला है |जिस वर्ग के पास संसाधन ज्यादा है उसकी जाति सशक्त है |आज आईएस,इंजिनीयर,डाक्टर,शिक्षक नई जाति के रूप में उभर रहे हैं |उसी तरह जैसे कभी लोहार,बढ़ई,तेली आदि उपजे थे |अंत में यही समझ आता है की जाति शाश्वत है जैसे की प्रेम |प्रेम को हर बार जाति के बन्धनों से निकल कर जीतना होगा |क्योंकि- ‘जाति-पाती पूछे हर कोई |’
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Comment
रचना पर आपकी अनमोल प्रतिक्रिया का शुक्रिया |
आदरणीय सोमेश जी, जातिवाद पर के बढ़ायी स्वीकार करें।
सरजी,जातपात की सच्चाई को उजागर करती कथा,नगरीकरण और शिक्षा से...........वाक्य सामाजिक स्तर की सत्यता बताता.अति सुंदर प्रस्तुती,आभार
जनाब सोमेश जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
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