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कफ़स में ख्वाब जब भी आसमाँ का देखता होगा ।
परिंदा रात भर बेशक बहुत रोता रहा होगा ।।1
कई आहों को लेकर तब हजारों दिल जले होंगे ।
तुम्हारा ये दुपट्टा जब हवाओं से उड़ा होगा ।।2
यकीं गर हो न तुमको तो मेरे घर देखना आके ।
तुम्हरी इल्तिजा में घर का दरवाजा खुला होगा ।।3
रकीबों से मिलन की बात मैंने पूछ ली उससे।
कहा उसने तुम्हारी आँख का धोका रहा होगा ।।4
बड़े खामोश लहजे में किया इनकार था जिसने ।
यकीनन वह हमारा हाल तुमसे पूछता होगा ।।5
उठाओ रुख से मत पर्दा यहां आशिक मचलते हैं ।
तुम्हारे हुस्न का कोई निशाना खामखा होगा ।।6
चले आओ हमारी बज़्म में यादें बुलाती हैं ।
तुम्हारा मुन्तजिर भी आज शायद मैकदा होगा ।।7
अगर है इश्क ये सच्चा तो फिर वो मान जायेगी ।
मुहब्बत में भला कैसे कोई शिकवा गिला होगा ।।8
बड़ी आवारगी के हद से गुजरी है मेरी ख्वाहिश ।
तुझे कैसे बताऊं इश्क में क्या क्या हुआ होगा ।।9
वो पीता छाछ कोअब फूंककर कुछ दिन से है देखा।
मुझे लगता है शायद दूध से वह भी जला होगा ।।10
किया था फैसला जिसने भी बिककर जुल्म के हक़ में ।
खुदा की मार से यारों वही रोता मिला होगा ।।11
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
सहीह शब्द है "ख़्वाहमख़्वाह"
आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार । खामखा शब्द में आ का स्वर तो है । थोड़ा सा क्लीयर करने की कृपा करें ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
6ठे शैर में क़ाफ़िया ग़लत है,सुधार करें ।
9वें के ऊला में 'आवारगी के' की जगह "आवारगी की" कर लें ।
कुछ एक शेर बहुत ही प्यारे हुए है क्या कहने।।बहुत बहुत बधाई
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