नमक सी जलन .....
मत समेटो
हृदय में
शूल सी स्मृतियों को
ये
जब तक रहेंगी
अपने लावे से
विगत पलों को
सुलगाती रहेंगी
इसलिए
रोको मत
बह जाने दो
इन
नमक सी जलन देती
स्मृतियों की खारी ढेरियों को
आंसूओं के
प्रपात में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद0 narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय विजय निकोर जी सृजन में निहित भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया। कम्प्यूटर में कुछ तकनीकि व्यवधान होने की कारण आभार प्रकट करने में विलम्ब हुआ..... क्षमा चाहता हूँ। कृपया स्नेह बनाये रखें।
आद0 Neelam Upadhyaya जी सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय Mahendra Kumar जी सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील सरना जी, अच्छी रचना । प्रस्तुति के लिए बधाई ।
उम्दा कविता है आदरणीय सुशील सरना जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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