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उम्र के पन्नों पर ...

उम्र के पन्नों पर.... 

उम्र के पन्नों पर
कितनी दास्तानें उभर आयी हैं
पुरानी शराब सी ये दास्तानें
अजब सा नशा देती हैं
हर कतरा अश्क का
दास्ताने मोहब्बत में
इक मील का पत्थर
नज़र आता है
रुकते ही
वक़्त
ज़हन को
हिज़्र का वो लम्हा
नज़्र कर जाता है
जब
किसी अफ़साने ने
मंज़िल से पहले
किसी मोड़ पर
अलविदा कह दिया

नगमें
दर्द की झील में नहाने लगे
किसी के अक्स
आँखों के समंदर
सुखाने लगे
हर लफ्ज़ पे
शिकन उभरने लगी
अपनी हंसी
लबों को
अजनबी लगने लगी
अब
सिर्फ़ तन्हाईयाँ है
रूठे अफ़साने हैं
उम्र दराज़
पन्ने हैं
सूखे हुए
कुछ ज़ख्म पुराने हैं
ख़्वाबीदा आँखों में
करवटें लेते
कुछ
पुराने अफ़साने हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on June 11, 2018 at 12:13pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणा जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 11, 2018 at 12:13pm


आदरणीय बृजेश कुमार ब्रिज जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on June 11, 2018 at 12:13pm


आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 10, 2018 at 1:42pm

उत्तम सर्जना ,हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 9, 2018 at 3:00pm

बहुत ही खूब कविता लिखी है आदरणीय..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2018 at 2:19pm

आ. भाई सुशील जी , सुंदर रचना हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on June 9, 2018 at 12:36pm

आदरणीय Mahendra Kumar जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 9, 2018 at 12:35pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Mahendra Kumar on June 9, 2018 at 9:59am

बहुत बढ़िया कविता है आदरणीय सुशील सरना जी. ज़िन्दगी को उम्र के पन्नों के माध्यम से ख़ूब बयान किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by narendrasinh chauhan on June 8, 2018 at 7:17pm

बहोत खूब 

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