उम्र के पन्नों पर....
उम्र के पन्नों पर
कितनी दास्तानें उभर आयी हैं
पुरानी शराब सी ये दास्तानें
अजब सा नशा देती हैं
हर कतरा अश्क का
दास्ताने मोहब्बत में
इक मील का पत्थर
नज़र आता है
रुकते ही
वक़्त
ज़हन को
हिज़्र का वो लम्हा
नज़्र कर जाता है
जब
किसी अफ़साने ने
मंज़िल से पहले
किसी मोड़ पर
अलविदा कह दिया
नगमें
दर्द की झील में नहाने लगे
किसी के अक्स
आँखों के समंदर
सुखाने लगे
हर लफ्ज़ पे
शिकन उभरने लगी
अपनी हंसी
लबों को
अजनबी लगने लगी
अब
सिर्फ़ तन्हाईयाँ है
रूठे अफ़साने हैं
उम्र दराज़
पन्ने हैं
सूखे हुए
कुछ ज़ख्म पुराने हैं
ख़्वाबीदा आँखों में
करवटें लेते
कुछ
पुराने अफ़साने हैं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणा जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रिज जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है।
उत्तम सर्जना ,हार्दिक बधाई
बहुत ही खूब कविता लिखी है आदरणीय..
आ. भाई सुशील जी , सुंदर रचना हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय Mahendra Kumar जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।
बहुत बढ़िया कविता है आदरणीय सुशील सरना जी. ज़िन्दगी को उम्र के पन्नों के माध्यम से ख़ूब बयान किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
बहोत खूब
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