कुछ क्षणिकाएं :
शर्मिन्दा हो गई
कुर्सी
बैठ गया
एक
नंगा इंसान
चुनावी साल में
वादों की गठरी लिए
.....................
शरमा गया
इंद्रधनुष
देखकर
धरा पर
इतनी
सफेदपोश
गिरगिटों को
..........................
सफ़ेद भिखारी
मांग रहे
भीख
छोटे भिखारी से
दिखा के
आश्वासनों की
चुपड़ी रोटी
.......................
आ गया
फिर से सावन
टरटराने लगे हैं
गली-गली
सफेद मेंढक
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरना जी, नमस्कार । अच्छी भावपूर्ण रचना की प्रस्तुति । बधाई स्वीकार करें ।
समसामयिक परिदृश्य का बेहतरीन सांकेतिक शब्दांकन। हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय सुशील सरना साहिब। ई़द मुबारक आप सभी को।
वाह, खूब सही फ़रमाय।
वाह वाह क्या कहने
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ । |
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