बरसात ....
मेघों की गर्जना
चपला की अटखेलियां
फुहारों में भीगी तेज हवाएँ
वातायन के पटों का शोर
करवटों की रात
लो फिर आ गई
वस्ल की यादें लिए
फिर
आज बरसात
वो चेहरे से उसका
बूंदे हटाना
लटें सुलझाना
हौले से मुस्कुराना
सच कहाँ भूलेगी
वो शर्मीली सी बात
कि याद ले आई
फिर
आज बरसात
बारिश की बूंदों की
अजब सी अगन
स्पर्शों की आहट से
घबराया मन
न और हां की हो गयी साज़िश
समर्पण के भावों की हो गई बारिश
ले आई आज फिर
करीब तुझको मेरे
बुझती नहीं है आतिश ये दिल की
करने लगी ताज़ा
रुख़सत के लम्हे
रुला गई आँखों को
फिर
आज बरसात
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय निकोर साहिब सृजन आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का आभारी है।
आदरणीय तस्दीक अहमद ख़ान साहिब , आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। सर आपको सपरिवार ईद मुबारक. बिलम्ब के लिए क्षमा।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति के भावों को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीया रक्षिता सिंह जी सृजन की गहनता को अपनी स्नेहिल प्रशंसा से मान देने का दिल से आभार।
जनाब सुशील सरना साहिब, बरसात के मौसम के स्वागत में सुन्दर कविता हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बारिश के मौसम के स्वागत में अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय सुशिल सरना जी। सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय सुशील जी,
शब्दों की बौछारों से मन को भिगो देने वाली बहुत ही सुन्दर रचना । बधाई स्वीकार करें ।
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