अंतर्मन में जाने कितने,
ज्वालामुखी फटे.
दूरी रही सुखों से अपनी,
दुख ही रहे सटे.
झोंपड़ियों में बुलडोजर के,
जब-तब घाव सहे.
अरमानों की जली चिताएँ,
सारे स्वप्न दहे.
गम की आँधी तूफानों के,
सम्मुख रहे डटे.
धागे बाँध प्रेम के हमने,
रिश्तों को जोड़ा.
कभी किसी विपदा में जिनका,
हाथ नहीं छोड़ा.
सूख गया जब खेत हमारा,
रहते कटे-कटे.
बहा पसीना सींची हमने,
आँगन की बगिया.
मौसम रोज बदलता करवट,
उड़ा रहा निंदिया.
समझ न पाये मिला हमें क्या,
सारी उम्र खटे.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय vijay nikore जी आपका हृदय से आभार
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपका हृदय से आभार
आदरणीया babitagupta जी, आपको रचना पसंद आई, आपका दिल से शुक्रिया
आदरणीय Mohammed Arif जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया को सादर नमन, यूँ ही स्नेह बनाये रखें .
बहुत सुन्दर ! बधाई।
आदरणीय शर्मा जी अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें..
मुग्ध कर दिया आपके इस नवगीत / गीत ने , हार्दिक बधाई आदरणीय
जीवन संघर्ष को दर्शाती कविता बहुत ही सुंदर .बहुत बहुत बधाई आदरणीय सर जी.
आदरणीय बसंंत कुमार जी आदाब,
बहुत ही प्यारा नवगीत । वाकई दिल से लिखा गया गीत । आपसे आगामी भी ऐसे ही गीतों की अपेक्षा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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