For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक गजल- अगर रात है रात कहूँगा

चाहत की परवाज अलग है

उसका हर अंदाज अलग है

ताजमहल की क्या है’ जरूरत  

अपनी ये मुमताज अलग है

 

सुन पाते हैं केवल हम ही

अपने दिल का साज अलग है

 

मन की बातें मन में रखना

उसका रीति रिवाज अलग है

 

और अधिक तपता सावन में   

विरही तन का राज अलग है

कैसे उसका कर्ज चुकाएँ  

मूल बहुत है, ब्याज अलग है

 

कोई’ दवाई काम न आती

दिल का दर्द, इलाज अलग है

 

कल की बातें कल कर लेना

जीलो जी भर आज अलग है  

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 11, 2018 at 3:37pm

ह्रदय से आभार आदरणीय Ganga Dhar Sharma 'Hindustan'  आपका, सादर नमन 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 11, 2018 at 3:37pm
Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on June 7, 2018 at 4:03pm

आदरणीय बसंत कुमार जी बड़ी ही भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई............

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2018 at 10:45am

आ. भाई बसंत जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

गुस्से के सँग प्यार अगर हो, करें तो लय और निखर जायेगी ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2018 at 5:40pm

आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया आदरणीय महेंद्र कुमार जी, इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहें 

Comment by Mahendra Kumar on June 6, 2018 at 10:16am

आदरणीय बसंत जी, इस अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आदरणीय निलेश जी ने आपकी ग़ज़ल के सन्दर्भ में बहुत अच्छी इस्लाह दी है और आपने उसका संज्ञान भी लिया है. मुझे पूरी उम्मीद है इसके बाद ग़ज़ल और निखर कर आएगी.

"जनता चाहे माथा कूटे, मैं बस मन की बात कहूँगा" इस शेर पर आदरणीय निलेश सर को भी बधाई.

सादर.

Comment by gumnaam pithoragarhi on June 5, 2018 at 10:01pm
अच्छे भाव हैं,,,,ग़ज़ल भी हो जाएगी
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 5, 2018 at 9:53am

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी आपकी प्रेरक एवं सारगर्भित समीक्षा का हार्दिक स्वागत है, आपने मेरी रचना को इतना समय दिया अभिभूत हूँ, निश्चित ही इस पर अभी और काम करता हूँ, तदोपरांत आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा सादर नमन 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 4, 2018 at 7:31pm

आ. बसंत जी,
इस बहर में मात्राएँ  बराबर   भी हों तो भी लय  अत्यंत महत्वपूर्ण है ..
.
मतले के सानी को रात अगर है रात कहूँगा  कर लीजिये ,,
.

इधर बाढ़ है उधर है’ सूखा

इसे ग़लत अनुपात कहूँगा

 

मेरी ख़ुशी देख मुँह लटके

कैसे उसको भ्रात कहूँगा.... सही शब्द है भ्राता अथवा भ्रात: अत: भ्रात लेना सही नहीं है 

 

गुस्से के सँग अगर प्यार हो,

तो उसको सौगात कहूँगा

 

तन मन दोनों भीगे जिसमें  

फिर से हो बरसात कहूँगा

 

नफरत मारी-मारी भटके

तब अच्छे हालात कहूँगा

 

भाएँ उनके मन को

मैं अपने जजबात कहूँगा   .. इस पर भी काम कीजिये थोडा..
एक शेर मेरी तरफ से ..
.
जनता चाहे माथा कूटे 
मैं बस मन की बात कहूँगा :D 
रचना थोडा समय और  चाहती है 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service