धोबन ढेर सारे कपड़़े धोकर छत पर बंधे तार पर क्लिप लगा कर सूखने डाल गई थी। कुछ ही देर में तेज़ हवायें आंधी का रूप ले चुकीं थीं। घर में कोई कपड़ों की सुध नहीं ले रहा था। वे असहाय से कपड़़े अब हवा के रुख़ के संग फड़फड़ाने लगे थे।
"बड़ा मज़ा आ रहा है! अब मैं ज़ल्दी से सूख कर राहत पाऊंंगी।" तार में लगे क्लिप और आंधी के साथ अपना संतुलन बनाते हुए एक पोषाक ने कहा।
"मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि कैसे संभालूं अपने आप को!" एक छोटी सी आधुनिक फैशनेबल पोषाक ने क्लिप संग सब तरफ़ झूमते हुए कहा- "कहीं हवा संग उड़ कर किसी नाली या गटर में न गिर जाऊं कॉलोनी में!"
"देखा, मैं देसी संस्कृति के मुताबिक हूँ, तो सुरक्षित हूँ, मज़े ले रही हूँ! और तुम आंधी से डर रही हो? कैसी आधुनिका हो?"
दूसरी छत पर इतराती स्कर्ट-टॉप पहने एक युवती की ओर देखकर वह छोटी पोषाक तार में ही लिपटती हुई उस पर बड़े आत्मविश्वास के साथ झूलती उस पोषाक को देखती रह गई।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
कृपया शब्द //पोषाक// को सही शब्द /पोशाक/ पढ़िएगा।
मेरी इस अभ्यास रचना पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई करते हुए अपने विचार सांझा करने हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय : Samar kabeer साहिब, Neelam Upadhyaya साहिबा, जनाब श्याम नारायण शर्मा साहिब व जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय उस्मानी जी, नमस्कार । बहुत ही सटीक तंज किया है। बढ़िया लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
पाश्चात्य सभ्यता के जरा सी हवा में पैर उखड़ते,संदेश देती बेहतरीन लघुकथा,आदरणीय सर जी बधाई स्वीकार कीजिएगा.
बहुत सुन्दर !! लघुकथा के लिये बधाइयाँ ॥ |
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