For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गंगा सूख गयी - लघुकथा –

गंगा सूख गयी - लघुकथा –

प्यारी "माँ"

तुम्हारी ऊँच नीच की तमाम नसीहतों को दरकिनार करते हुए, मैंने अपने परिवार से बड़े और धनवान खानदान के रवि से प्रेम विवाह किया था। हालांकि हम सब बहुत खुश थे। मेरे प्रति सब का व्यवहार बेहद आत्मीय था।

एक साल बाद  गुड़िया ने जन्म लिया। अचानक से परिवार के लोगों का नज़रिया बदल गया। शायद सब को पुत्र की चाहत थी। गुड़िया को तो कोई भी गोद लेना तो दूर, छूता तक नहीं था। यहाँ तक कि रवि,  उसका पिता होने के बावज़ूद , उसे प्यार नहीं करता था। मुझे यह सब बहुत पीड़ित करता था। रवि मुझसे भी कतराने लगा था।

 मेरी दुनियाँ सिर्फ़ गुडिया में ही सिमट कर रह गयी। गुड़िया भी हर घड़ी मेरे ही पल्लू से चिपकी रहती।

गुड़िया के जन्म के बाद लगभग  एक डेढ़ साल तक रवि ने मुझसे शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास नहीं किया। मैंने सोचा कि शायद गुड़िया का हर वक्त मेरे साथ रहना ही इसका कारण होगा।

उस दिन हमारी शादी की साल गिरह थी लेकिन मौसम बहुत खराब था। सुबह से रात तक आँधी तूफ़ान, ओले  और बारिश  हो रही थी। रवि ने रात को छत पर चलने की ज़िद की। मैंने गुड़िया के अकेले होने का वास्ता दिया। रवि ने कहा कि वह गहरी नींद में है। हम लोग जल्दी आ जायेंगे। मुझे लगा कि यदि मैं ज्यादा टालमटोल करूंगी तो कहीं रवि नाराज ना हो जाय। और इतने समय बाद संबंध  सुधारने का मौका हाथ से ना निकल जाय। इसलिये मैं रवि के साथ छत पर चली गयी। रवि का प्यार टूटे  हुये बांध की तरह फ़ट पड़ा। सब कुछ बहा ले जाने को तत्पर| इसी बीच मुझे लगा जैसे गुड़िया चीखी। लेकिन मैं रवि की बलिष्ठ बाँहों की गिरफ़्त से खुद को छुड़ा नहीं पाई।

नीचे आने पर देखा कि गुड़िया दरवाजे के पीछे ज़मीन पर औंधे मुँह बेहोश पड़ी थी। उसके गालों पर आँसुओं  की धारा सूख कर जम चुकी थी। डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।

मेरे लिये यह सदमा झेल पाना दुश्वार था। मैं पूरी तरह टूट गयी| मेरे हृदय से प्यार नाम का झरना लुप्त हो गया| मेरा तन और मन पूरी तरह शुष्क होगया।

मैंने रवि से सदैव के लिये रिश्ता तोड़ दिया। मैं तुम्हारे पास आ रही हूँ माँ|

तुम्हारी अभागी बेटी

 “गंगा”

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 854

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on June 21, 2018 at 3:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 21, 2018 at 3:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी

Comment by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 1:14pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी सामजिक विचारों की विकृति को उजागर करती इस मार्मिक लघुकथा के लिया हार्दिक बधाई।

Comment by babitagupta on June 21, 2018 at 12:15pm

आधुनिकता की दुहाई देता पुरुषप्रधान समाज आज भी बेटा-बेटी में समानता को आत्मसात नही कर पाया.बेहतरीन उम्दा लघुकथा,पुरुष दम्भ की सोच का आयना दिखाती रचना.साथ ही गंगा द्वारा बन्धनों के खिलाफ उठाया कदम सराहनीय योग्य.हार्दिक बधाई आदरणीय सर जी.

Comment by Neelam Upadhyaya on June 21, 2018 at 11:47am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार ।  जाने कब हमारे समाज से लड़कों और लड़कियों के बीच असमानता का भाव समाप्त होगा । कथा की पात्र गंगा द्वारा उठाये गए कदम की मैं सराहना करती हूँ और समर्थन भी हूँ ।  बहुत ही अच्छी  प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।   

Comment by Shyam Narain Verma on June 21, 2018 at 10:56am
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service