गंगा सूख गयी - लघुकथा –
प्यारी "माँ"
तुम्हारी ऊँच नीच की तमाम नसीहतों को दरकिनार करते हुए, मैंने अपने परिवार से बड़े और धनवान खानदान के रवि से प्रेम विवाह किया था। हालांकि हम सब बहुत खुश थे। मेरे प्रति सब का व्यवहार बेहद आत्मीय था।
एक साल बाद गुड़िया ने जन्म लिया। अचानक से परिवार के लोगों का नज़रिया बदल गया। शायद सब को पुत्र की चाहत थी। गुड़िया को तो कोई भी गोद लेना तो दूर, छूता तक नहीं था। यहाँ तक कि रवि, उसका पिता होने के बावज़ूद , उसे प्यार नहीं करता था। मुझे यह सब बहुत पीड़ित करता था। रवि मुझसे भी कतराने लगा था।
मेरी दुनियाँ सिर्फ़ गुडिया में ही सिमट कर रह गयी। गुड़िया भी हर घड़ी मेरे ही पल्लू से चिपकी रहती।
गुड़िया के जन्म के बाद लगभग एक डेढ़ साल तक रवि ने मुझसे शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास नहीं किया। मैंने सोचा कि शायद गुड़िया का हर वक्त मेरे साथ रहना ही इसका कारण होगा।
उस दिन हमारी शादी की साल गिरह थी लेकिन मौसम बहुत खराब था। सुबह से रात तक आँधी तूफ़ान, ओले और बारिश हो रही थी। रवि ने रात को छत पर चलने की ज़िद की। मैंने गुड़िया के अकेले होने का वास्ता दिया। रवि ने कहा कि वह गहरी नींद में है। हम लोग जल्दी आ जायेंगे। मुझे लगा कि यदि मैं ज्यादा टालमटोल करूंगी तो कहीं रवि नाराज ना हो जाय। और इतने समय बाद संबंध सुधारने का मौका हाथ से ना निकल जाय। इसलिये मैं रवि के साथ छत पर चली गयी। रवि का प्यार टूटे हुये बांध की तरह फ़ट पड़ा। सब कुछ बहा ले जाने को तत्पर| इसी बीच मुझे लगा जैसे गुड़िया चीखी। लेकिन मैं रवि की बलिष्ठ बाँहों की गिरफ़्त से खुद को छुड़ा नहीं पाई।
नीचे आने पर देखा कि गुड़िया दरवाजे के पीछे ज़मीन पर औंधे मुँह बेहोश पड़ी थी। उसके गालों पर आँसुओं की धारा सूख कर जम चुकी थी। डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।
मेरे लिये यह सदमा झेल पाना दुश्वार था। मैं पूरी तरह टूट गयी| मेरे हृदय से प्यार नाम का झरना लुप्त हो गया| मेरा तन और मन पूरी तरह शुष्क होगया।
मैंने रवि से सदैव के लिये रिश्ता तोड़ दिया। मैं तुम्हारे पास आ रही हूँ माँ|
तुम्हारी अभागी बेटी
“गंगा”
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।
हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीय तेजवीर सिंह जी सामजिक विचारों की विकृति को उजागर करती इस मार्मिक लघुकथा के लिया हार्दिक बधाई।
आधुनिकता की दुहाई देता पुरुषप्रधान समाज आज भी बेटा-बेटी में समानता को आत्मसात नही कर पाया.बेहतरीन उम्दा लघुकथा,पुरुष दम्भ की सोच का आयना दिखाती रचना.साथ ही गंगा द्वारा बन्धनों के खिलाफ उठाया कदम सराहनीय योग्य.हार्दिक बधाई आदरणीय सर जी.
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार । जाने कब हमारे समाज से लड़कों और लड़कियों के बीच असमानता का भाव समाप्त होगा । कथा की पात्र गंगा द्वारा उठाये गए कदम की मैं सराहना करती हूँ और समर्थन भी हूँ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर |
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