बातें ...
लम्हों की आग़ोश में
नशीली सी रातों की
शीरीं से अल्फ़ाज़ की
महकती बातें
बे हिज़ाब रातों की
शोख़ी भरी शरारतों की
तन्हाई में भीगी
बरसाती बातें
आँखों के सागर में
जज़्बात की कश्ती में
यादों के साहिल पे
सुलगती बातें
जिस्म की पनाहों में
अनदेखी राहों में
दिल की गुफ़ाओं में
बहकती बातें
मोहब्बत के मौसम में
आँखों की शबनम में
ग़ज़ल की करवटों में
उफ़नती बातें
आर्ज़ू के लिबास में
तिश्ना लबों की प्यास में
लम्स से बतियाती
वो मदमाती बातें
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब ... प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा एवं अमूल्य राय का शुक्रिया। अभी संशोधित करता हूँ।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया प्रतिक्रिया का आभारी है।
आदरणीय नरेंद्र चौहान जी सृजन मधुर प्रशंसा दिल से आभार।
आदरणीय मो. आरिफ साहिब सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है।
आदरणीय बसंत कुमार जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी प्रस्तुति आपकी मधुर प्रतिक्रिया की आभारी है।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस् प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'आगोश' को "आग़ोश" कर लें ।
'अल्फ़ाज़ों' को "अल्फ़ाज़" कर लें ।
'बे-हिज़ाब' को "बे हिजाब" कर लें ।
'तिश्नागरों' को "तिश्ना लबों" कर लें ।
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत-बहुत बधाई। सादर।
खुब सुन्दर रचना
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