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ग़ज़ल....दिल जला के रौशनी होती नहीं है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन

दर्द अपना यूँ सर-ए-बाज़ार कर के
क्या मिलेगा वक़्त से तक़रार कर के

कुछ नहीं हासिल,समझते क्यों नहीं हो
गम उठाना आह भरना प्यार कर के

सामने उस मोड़ पर कुछ अनमना सा
शख़्स इक बैठा है सब न्योछार कर के

बन्दगी उल्फत है मैं था इस गुमां में
वो नहीं आया अना को पार कर के

दिल जला के रौशनी होती नहीं है
ये भी 'ब्रज' ने देखा है सौ बार कर के


(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 27, 2018 at 11:41am

आभार संग नमन आदरणीय लक्ष्मण धामी जी..सादर

Comment by TEJ VEER SINGH on June 27, 2018 at 6:44am

हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'  जी। बेहतरीन गज़ल।

बन्दगी उल्फत है मैं था इस गुमां में 
वो नहीं आया अना को पार कर के

Comment by Mahendra Kumar on June 26, 2018 at 10:06pm

वाह! क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय बृजेश जी। इस उम्दा प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2018 at 8:48pm

आ. भाई ब्रजेश जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधायी ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 26, 2018 at 7:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आरिफ जी..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 26, 2018 at 7:17pm

आदरणीय श्याम नारायण जी आपका हार्दिक आभार..सादर

Comment by Mohammed Arif on June 26, 2018 at 1:51pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब,

                            बेहतरीन ग़ज़ल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की की इस्लाह का संज्ञान लें ।

Comment by Shyam Narain Verma on June 26, 2018 at 1:24pm
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ सादर.
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 26, 2018 at 10:21am

ग़ज़ल पे शिरक़त के लिए शुक्रिया आदरणीय मोहित जी...सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 26, 2018 at 10:21am

जरूर आदरणीय समर जी...बिलकुल विचारणीय है..कुछ और बेहतर कर सका तो ख़ुशी होगी...सादर

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