फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
दर्द अपना यूँ सर-ए-बाज़ार कर के
क्या मिलेगा वक़्त से तक़रार कर के
कुछ नहीं हासिल,समझते क्यों नहीं हो
गम उठाना आह भरना प्यार कर के
सामने उस मोड़ पर कुछ अनमना सा
शख़्स इक बैठा है सब न्योछार कर के
बन्दगी उल्फत है मैं था इस गुमां में
वो नहीं आया अना को पार कर के
दिल जला के रौशनी होती नहीं है
ये भी 'ब्रज' ने देखा है सौ बार कर के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आभार संग नमन आदरणीय लक्ष्मण धामी जी..सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी। बेहतरीन गज़ल।
बन्दगी उल्फत है मैं था इस गुमां में
वो नहीं आया अना को पार कर के
वाह! क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय बृजेश जी। इस उम्दा प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
आ. भाई ब्रजेश जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधायी ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आरिफ जी..
आदरणीय श्याम नारायण जी आपका हार्दिक आभार..सादर
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब,
बेहतरीन ग़ज़ल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की की इस्लाह का संज्ञान लें ।
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ सादर. |
ग़ज़ल पे शिरक़त के लिए शुक्रिया आदरणीय मोहित जी...सादर
जरूर आदरणीय समर जी...बिलकुल विचारणीय है..कुछ और बेहतर कर सका तो ख़ुशी होगी...सादर
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